भज गोविन्दम – श्लोक
– 6
यावत्पवनोनिवसति
देहे, तावत्पृच्छतिकुशलंगेहे |
गतवतिवायौदेहापाये,
भार्याबिभ्यतितस्मिन्काये ||6||
अर्थात तुम्हारी
मृत्यु के एक क्षण पश्चात ही वह तुम्हारा दाह संस्कार कर देंगे | यहाँ तक कि
तुम्हारी पत्नी जिसके साथ तुमने अपनी पूरी जिंदगी गुज़री, वह भी तुम्हारे मृत शरीर
को घृणित दृष्टि से देखेगी |
अभी
पिछले दिनों ‘भज गोविन्दम’ के तीसरे श्लोक पर हमने विचार किया था | उसी स्त्री/पुरुष
के शरीर के प्रति आकर्षण की बात को आगे बढ़ाते हुए आदि शंकराचार्य जी कहते हैं कि
जिस आकर्षण के वशीभूत होकर हमने अपना परिवार और संसार बनाया और बढाया है, आपके उसी
परिवार के सदस्य आपकी इस भौतिक देह की मृत्यु होते ही उसे अग्नि को समर्पित कर
देते हैं | जिस स्त्री के प्रति आप आकर्षित हुए थे, जिसे आपने अपनी पत्नी बनाया
था, वह भी उस मृत देह के साथ क्षण भर भी नहीं रहना चाहेगी, जबकि आपने अपना
सम्पूर्ण जीवन उसके साथ बिताया था | यह प्रकृति का ही एक गुण है कि ज्यों ही इस
शरीर की मृत्यु होती है, उसके प्रति आकर्षण समाप्त हो जाता है | इसका कारण है, मृत
शरीर का धीरे-धीरे सड-गल जाना | इसीलिए मृत्यु होने के बाद यथासंभव शीघ्र ही उसका दाह-संस्कार
कर दिया जाता है |
यह तो हुई प्रकृति की बात | शंकराचार्य जी
महाराज का यहाँ कहना है कि शरीर के प्रति आकर्षण तो प्रकृति का स्वभाव है परन्तु
उसमें आसक्त हो जाना मनुष्य का स्वभाव है | आसक्ति रखते हुए हम सोचते हैं कि हमारे
बिना हमारा परिवार एक क्षण भी नहीं रह सकेगा | जबकि वास्तविकता यह है कि मृत शरीर
के प्रति कोई आसक्त नहीं होता | शरीर के मृत होते ही उसे जलाकर पूर्णतया समाप्त
करना ही आवश्यक समझा जाता है | जब ऐसा होना ही निश्चित है, तो फिर इस शरीर अथवा
ऐसे ही किसी अन्य शरीर के प्रति आसक्त होना अनुचित है | शरीर एक साधन मात्र है, उस
साध्य को साधने के लिए | साध्य एक ही है, परमात्मा | उस साध्य को पाने के लिए इस
शरीर के स्वस्थ रहते हुए साधना में लगा दें | एक दिन इसको नष्ट होकर जलना ही है |
इसीलिए शंकराचार्य कहते हैं कि इस बात को आत्मसात कर गोविन्द को भजें |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
||हरिः शरणम्||
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