भज गोविन्दम् –
श्लोक सं.7 (कल से आगे-2)-
गीता के इस 8/5 श्लोक में भगवान श्री
कृष्ण ने कह तो दिया कि जीवन के अन्तकाल में जो व्यक्ति मुझको याद करते हुए शरीर त्यागता
है, वह मुझको ही प्राप्त होता है, परन्तु क्या जीवन भर कामनाओं को पूर्ण करने में
लगा कोई व्यक्ति, जिसने परमात्मा का नाम न लिया हो, अंतिम समय में प्रभु का स्मरण
कर सकता है ? मैं कहता हूँ, नहीं, बिलकुल नहीं | आपने जीवन भर जिसका स्मरण किया
है, वही आपको अंतिम समय ही स्मरण में रहेगा | आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा इस बात
को स्पष्ट करने के लिए एक दृष्टान्त देते हैं | एक धनी व्यक्ति ने जीवन भर खूब धन
कमाया और संचित भी किया | वह इतना अधिक कंजूस था कि जरा सा भी कार्य जिसमें उसे धन
का अपव्यय होते लगता था, तुरंत क्रोधित हो उठता था | एक दिन वह मरणासन्न स्थिति
में मृत्यु शैया पर पड़ा था | उसका परिवार उसे चारों ओर घेर कर खड़ा था | तभी एक
पुत्र ने देखा कि पिताजी कुछ कहना चाह रहे है, परन्तु बोल नहीं पा रहे हैं | सभी
पुत्रों ने मिलकर सलाह की | उनका अनुमान था कि पिताजी अपनी धन-सम्पति के बारे में
अभी तक उनके पास रही कोई गोपनीय बात बताने जा रहे हैं | सभी पुत्रों ने निर्णय कर तत्काल
ही चिकित्सक को बुलाया और उससे कहा कि पिताजी को कोई ऐसी दवा दीजिये जिससे वे कुछ
समय के लिए बोल कर अपनी बात कह सके | चिकित्सक ने एक इंजेक्शन दिया | कुछ समय बाद
सेठजी लड़खड़ाती आवाज में बोले कि तुम सब यहाँ खड़े-खड़े मुझ मरने वाले को क्या देख
रहे हो ? उधर देखो, वहां बछड़ा झाड़ू खाकर नुकसान कर रहा है |
यही हाल हम सभी का | हम भी अपने
मरण काल में अपनी ही ऐसी ही किसी बात का जिक्र करेंगे | उस समय तो केवल उसी के मुख
में परमात्मा का नाम होगा, जो अपनी युवावस्था से ही उस गोविन्द का नाम भजता आ रहा
है | तभी शंकराचार्य जी कह रहे हैं कि युवावस्था बीत जाने पर जो जीवन भर आपने किया
है, केवल उसी बात की ही चिंता करोगे, परमात्मा का चिंतन नहीं | परमात्मा का चिंतन
तो अंत समय में वही कर सकता है, जिसने अपने जीवन में परमात्मा को ही अपना एक मात्र
ध्येय बनाया है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment