भज गोविन्दम् – श्लोक
सं.11(कल से आगे)-
जब हम धन कमा लेते हैं, हमारी दौलत बढ़ने
लगती है, मित्र भी आ जाते हैं | मित्र केवल धन-दौलत के कारण ही बनते हैं, मैं यह
नहीं कह रहा हूँ | मेरे कहने का आशय यह है कि बहुत से मित्र प्रायः धन दौलत को
देखकर ही बनते और बनाये जाते हैं | अगर कोई मित्र आपके धन के आधार पर नहीं बना है,
तो फिर मैं कहता हूँ कि वही आपका सच्चा मित्र है | मित्र भी कभी स्थाई नहीं होते |
धन को देखकर बनने वाले मित्र बरसात में उगे कुकुरमुतों की तरह होते है, जो धन के
समाप्त होते ही दिखाई पड़ने बंद हो जाते हैं | शंकराचार्य जी महाराज कहते हैं कि धन
व्यक्ति को विषय भोग के लिए प्रेरित करता है | जैसे कि धन की तीन गति जो बताई गयी है,
उनमें एक गति ‘भोग’ भी है | जब व्यक्ति के पास धन आता है, तो वह उसे भोगने लगता है
| विषय- भोग अकेले भोगना व्यक्ति को कभी भी सुख प्रदान नहीं कर सकता | इस सुख की
वृद्धि के लिए उसके पास मित्र होने आवश्यक है | मित्र विषय-भोग को भोगने के लिए
उपलब्ध हो ही जाते हैं और फिर आज के इस युग में ऐसे मित्र मिलने सुलभ भी हैं |
युवावस्था, धन-दौलत, मित्र आदि व्यक्ति को एक
प्रकार की संतुष्टि प्रदान करते हैं | इस छद्म संतुष्टि को बढ़ाने के लिए व्यक्ति
में अभिमान पैदा हो जाता है | व्यक्ति का अभिमान एक न एक दिन उसके पतन का कारण अवश्य
बनता है | जब भोगों में आसक्त व्यक्ति अपनी युवावस्था को यूँ ही गँवा देता है, तब
उसकी धन कमाने की क्षमता भी कम होने लगती है और धन धीरे-धीरे घटने लगता है | घटते
धन को देखकर एक-एक कर मित्र भी साथ छोड़ते चले जाते है | धन, युवावस्था और मित्र
आदि तो धीरे-धीरे साथ छोड़ते चले जाते हैं परन्तु अभिमान फिर तत्काल नहीं जाता है |
गर्व जिस बात का था, आखिर उन सब के नाश से धीरे-धीरे समय के साथ यह भी कम होता
जाता है | इस अवस्था में पहुंचकर व्यक्ति को आभास होने लगता है कि उसका जीवन
व्यर्थ ही चला गया है | उसके हाथ सिवाय पछतावे के कुछ भी नहीं रहता | हमें विचार
करना चाहिए कि यह सौन्दर्य प्रकृति की देन है | धन हमारे भाग्य के कारण हमें मिला
है | वही मित्र श्रेष्ठ होता है, जो हमें सन्मार्ग पर चलाता है और कुमार्ग पर जाने
से रोकता है | फिर किस बात का गर्व करना ? अभिमान जीवन के सर्वनाश का कारण बनता
है, इससे दूर रहना ही श्रेयस्कर है | गर्व का समूल नाश करना आवश्यक है और सबसे
अच्छा तो इसको पैदा न होने देना ही है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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