भज गोविन्दम् –
श्लोक सं.-12-
दिनमपि रजनी सायं
प्रातः, शिशिरवसन्तौ पुनरायतः |
कालः क्रीडति गच्छत्यायु:,
तदपि न मुंचतिआशावायु: ||12||
अर्थात दिन और रात,
शाम और सुबह सर्दी और बसन्त आदि तो बार-बार आते-जाते रहते हैं, काल की इस क्रीड़ा
के साथ जीवन नष्ट होता रहता है परन्तु मनुष्य की इच्छाओं का अंत कभी नहीं होता है |
समय का बीतना और ऋतुओं का बदलना
सांसारिक नियम है | कोई भी व्यक्ति अमर नहीं है | मृत्यु के सामने हर किसी को
झुकना पड़ता है | परन्तु हम मोह माया के बंधनों से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाते हैं
|
श्लोक सं.11 की ही बात को शंकराचार्य महाराज आगे
बढ़ाते हुए कह रहे हैं कि परिवर्तन होना संसार का नियम है | इसी परिवर्तन के
अंतर्गत ऋतुओं का परिवर्तन होना, समय का परिवर्तित होते जाना आ जाता है | आज हम
जहाँ पर हैं, कल वहां न होकर कहीं ओर ही होंगे | यहाँ तक कि हम भी आज जो कुछ हैं.
कल कुछ और ही होंगे | बचपन समयानुसार पल-पल कर बीतता जाता है, और युवावस्था आ जाती
है | इन्द्रिय भोग में रत युवावस्था कब बीत जाती है, इसका भी पता ही नहीं चलता | हमें
पता सब कुछ चलता है, परन्तु हम मोह-माया में इस प्रकार बंधे हुए रहते हैं कि समय और
अवस्था के बीतते जाने का कुछ भी ज्ञान नहीं रहता | जब आप वायुयान से यात्रा कर रहे
होते हैं तब आपको इस बात का अनुभव ही नहीं होता कि विमान 800-900 किलोमीटर प्रति घंटे
की गति से आगे बढ़ रहा है | हमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि विमान अपनी एक ही
अवस्था में स्थिर खड़ा है | यही हाल हमारे जीवन का है | आज हम जो कुछ भी कर रहे
हैं, वह मन में एक स्थायित्व का भाव लिए हुए ही कर रहे हैं अर्थात यह सोचते हुए कर
रहे हैं मानो यहाँ पर हमें सदैव के लिए रहना है | हम यह नहीं जानते कि एक दिन इस
संसार को, इस शरीर को छोड़कर हमें जाना होगा | वास्तविकता यह है कि इस संसार में
जन्म लेने वाला प्रतिपल बदल रहा है, प्रत्येक क्षण वह मृत्यु की ओर अग्रसर हो रहा
है |
हम स्वयं के जीवन में किसी भी
प्रकार का परिवर्तन नहीं कर पा रहे हैं | एक दूसरे की देखा देखी का जीवन जी रहे
हैं, हम सभी | जन्म के बाद समय के साथ-साथ हमारी अवस्था भी बदलती जा रही है | युवावस्था
भी प्रौढ़ावस्था की ओर जा रही है | प्रौढ़ भी एक दिन वृद्ध होगा | वृद्धावस्था का
समापन इस शरीर के समाप्त हो जाने के साथ ही हो जाना है | आज तक कोई भी शरीर इस
संसार में अमरत्व को उपलब्ध नहीं हो सका है | यह एक शाश्वत सत्य है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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