Friday, October 27, 2017

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.13(समापन)-

भज गोविन्दम् – श्लोक सं.13(समापन)-
          इतने विवेचन के बाद प्रश्न यह पैदा होता है कि स्त्री और धन के लिए तो जीवन में कर्म स्वतः ही होते हैं, उनको प्राप्त करने का उद्देश्य रखकर विशेष प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है | फिर व्यक्ति के द्वारा इस जीवन में किस उद्देश्य के लिए कर्म किये जाने चाहिए ? स्त्री और धन के लिए आपके द्वारा किये जाने वाला प्रत्येक कर्म आपको पुनर्जन्म की ओर ही ले जाएगा | अतः इन दोनों की प्राप्ति के लिए जो कर्म स्वतः होकर जिस प्रकार के भी उनके परिणाम मिलते रहें, उन्हें सहज भाव से प्रारब्ध मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए | मनुष्य को अपने द्वारा इस जीवन में किये जाने वाले कर्म वर्तमान जीवन में केवल धर्म और मोक्ष ही प्रदान कर सकते हैं | इसलिए इस जीवन में धर्म और मुक्ति के प्रयास के लिए ही कर्म करने चाहिए, काम और अर्थ की प्राप्ति के लिए नहीं |
           स्त्री और धन आपके संसार का निर्माण करते हैं | संसार बनता है स्त्री और धन में आसक्ति से | स्त्री और धन को अपने द्वारा अर्जित किया गया मानना ही बंधन है | यह बंधन ही व्यक्ति को सकाम कर्म करने के लिए प्रेरित करता है | सकाम कर्म वर्तमान जीवन में फल प्रदान कर ही नहीं सकते | सकाम कर्मों से मनोवांछित फल न मिल पाने के कारण व्यक्ति व्यथित हो जाता है, और अधिक जोश से फिर नए कर्म करता है | इस प्रकार स्त्री, धन और उन्हें अपने अनुसार संचालित करने के लिए किये जा रहे कर्मों के परिणाम मनुष्य को चिंताग्रस्त कर देते हैं | संत महात्माओं का सत्संग होने से हम उनसे ज्ञान प्राप्त कर व उनके उपदेशों का पालन कर चिंता मुक्त हो सकते हैं | संत हमें यही ज्ञान देते हैं कि प्रारब्ध से ही अर्थ और काम की प्राप्ति होती है | अतः इन दो की प्राप्ति के लिए व्यर्थ की चिंता न करें बल्कि धर्म और मोक्ष को पाने का प्रयास करें | यही ज्ञान संसार रुपी भवसागर से पार होने के लिए एक नौका बनेगा | इसलिए शंकराचार्य महाराज कहते हैं कि-
का ते कान्ता धन गत चिन्ता वातुल, किं तव नास्ति नियन्ता |
त्रिजगति सज्जन संगतिरेका भवति भवार्णवतरणे नौका ||13||
अर्थात तुम्हें अपनी पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है ? क्या उनका कोई नियंत्रक नहीं है ?तीनों लोकों में केवल सज्जनों का संग ही भवसागर से पार जाने की नौका है |
सांसारिक मोह माया, धन और स्त्री के बंधनों में फंसकर एवं व्यर्थ की चिंता करके हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा | क्यों हम सदैव अपने आपको इन चिंताओं से घेरे रखते हैं ? क्यों हम महात्माओं से प्रेरणा लेकर उनके दिखाए हुए मार्ग पर नहीं चलते ? संत महात्माओं से जुड़ कर अथवा उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का पालन कर के ही हम सांसारिक बंधनों से एवं व्यर्थ की चिंताओं से मुक्त हो सकते हैं |
“|| भज गोविन्दं भज गोविन्दं गोविन्दं भज मूढमते ||”
              इस प्रकार 12 श्लोकों के माध्यम से आदि गुरु शंकराचार्य ने हमारा ध्यान संसार से हटाकर गोविन्द की ओर लगाने का प्रयास किया है | हम उनके इस ज्ञान को कितना आत्मसात करते हैं, यह हमारे विवेक पर निर्भर करता है | शंकराचार्यजी के साथ चल रहे 14 शिष्य अब एक-एक कर इस विषय पर एक-एक श्लोक कहना प्रारम्भ कर रहे हैं, जो उनके गुरु द्वारा पूर्व में दिए जा रहे ज्ञान पर ही कहे गए हैं | कल से उन्हीं श्लोकों पर चिंतन प्रारम्भ करेंगे |
कल-श्लोक सं.14
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल  

|| हरिः शरणम् ||

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