Monday, October 2, 2017

भज गोविन्दम – श्लोक सं.5(कल से आगे)-

भज गोविन्दम – श्लोक सं.5(कल से आगे)-
                  हमें जब यह स्पष्ट हो जाता है कि परिवार व मित्र आदि हमें अपने पूर्वजन्म के कर्मों और संस्कारों के फलस्वरूप मिले हैं, तो प्रश्न यही उठता है कि ऐसे में हमें क्या करना चाहिए ? शंकराचार्य जी महाराज कहते हैं कि हमें उनकी उन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए जो कि पूर्व जन्म में पूरी करने से शेष रह गयी थी | फिर परिवार आदि में आसक्ति छोड़ देनी चाहिए | हमारी आसक्ति ही हमें परिवार के साथ बंधन में डालती है | यह बंधन हमने ही पैदा किया है और इस बंधन से हम स्वयं ही मुक्त हो सकते हैं | अन्य कोई भी सक्षम नहीं है, जो हमें मुक्त कर सके | आज जो जिसका पुत्र है, वह कल आपका क्या था, कोई नहीं जानता | इस बारे में आचार्य जी श्री गोविन्द राम शर्मा ने राजा भोज का एक प्रसंग सुनाया | राजा भोज को उनकी महारानी स्नान करा रही थी | स्नान में उन्हें बहुत आनंद अ रहा था | वह रानी को कहते कि एक बार और, एक बार और | ऐसा सुनकर महारानी हंस पड़ी | राजा भोज ने कहा कि ऐसा मैंने क्या कह दिया, जो तुम हंस रही हो | रानी ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर मेरी छोटी बहन देगी, जो कि पास के ही एक राज्य की महारानी है | राजा भोज अपनी उस साली के पास पहुंचता है और उसको अपनी पत्नी की हंसी का रहस्य पूछता है | उसकी साली कहती है कि मैं अभी गर्भवती हूँ और शीघ्र ही मेरे प्रसव होने वाला है | प्रसव से मैं एक पुत्र को जन्म दूंगी | प्रसव के तुरंत बाद मेरी मृत्यु हो जाएगी | बाद में मेरा पुनर्जन्म विदर्भ के महाराज के यहाँ पुत्री के रूप में होगा | जब मैं विवाह योग्य हो जाऊंगी और मेरा विवाह निश्चित हो जाये तब तुम मेरे पास आना | उस समय तक तुम्हें उत्तर पाने के लिए प्रतीक्षा करनी होगी | यह सुनकर राजा भोज अपने राज्य को लौट आये और सभी घटनाक्रम पर नज़र रखने लगे |
           वही हुआ, जैसा उनकी साली ने कहा था | साली पुत्र को जन्म देकर मर गयी | उसकी मृत्यु के कुछ समय बाद ही राजा भोज को यह पता भी चल गया कि विदर्भ के राजा के यहाँ एक कन्या ने जन्म लिया है | राजा भोज को बड़ा अचरज हुआ | अधिक उत्सुकता के साथ वे उसके बड़ी होने और विवाह के निश्चित होने की प्रतीक्षा करने लगे | काल की गति, राजा भोज की उस पत्नी का भी देहांत हो गया, जो नहलाते समय हंस पड़ी थी | इधर राजा भोज को पता चलता है कि विदर्भ की राजकुमारी का विवाह निश्चित हो गया है | राजा भोज तो इसी समय की दीर्घ अवधि से प्रतीक्षा कर रहे थे | वे तुरंत ही घोड़े पर स्वर हो पहुँच गए, विदर्भ की राजकुमारी के पास और अपने प्रश्न का उत्तर माँगा | राजकुमारी ने कहा कि आप धैर्य के साथ मेरी बात सुनिए | क्या आप जानते हैं कि मेरा विवाह किस राजकुमार के साथ होना निश्चित हुआ है ? मेरा विवाह उसी मेरे पूर्वजन्म के समय के मेरे उसी पुत्र के साथ होना निश्चित हुआ है, जिसको मैंने तब जन्म दिया था | उस जन्म की मेरी बड़ी बहिन इसलिए हंसी थी क्योंकि वह भी अपने पूर्वजन्म में आज मेरी तरह ही अपने पति की मां थी | जब आप उनके पुत्र थे तब नहाने से बचने के लिए आप इधर उधर दौड़ा करते थे | जब वही मां आपकी नए जन्म में पत्नी बनी तब आप उसके नहलाने से खुश हो रहे थे | इसलिए वह हंस पड़ी थी |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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