भज गोविन्दम – श्लोक
सं.5(कल से आगे)-
हमें जब यह स्पष्ट हो जाता है
कि परिवार व मित्र आदि हमें अपने पूर्वजन्म के कर्मों और संस्कारों के फलस्वरूप
मिले हैं, तो प्रश्न यही उठता है कि ऐसे में हमें क्या करना चाहिए ? शंकराचार्य जी
महाराज कहते हैं कि हमें उनकी उन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए जो कि पूर्व
जन्म में पूरी करने से शेष रह गयी थी | फिर परिवार आदि में आसक्ति छोड़ देनी चाहिए |
हमारी आसक्ति ही हमें परिवार के साथ बंधन में डालती है | यह बंधन हमने ही पैदा
किया है और इस बंधन से हम स्वयं ही मुक्त हो सकते हैं | अन्य कोई भी सक्षम नहीं
है, जो हमें मुक्त कर सके | आज जो जिसका पुत्र है, वह कल आपका क्या था, कोई नहीं जानता
| इस बारे में आचार्य जी श्री गोविन्द राम शर्मा ने राजा भोज का एक प्रसंग सुनाया |
राजा भोज को उनकी महारानी स्नान करा रही थी | स्नान में उन्हें बहुत आनंद अ रहा था
| वह रानी को कहते कि एक बार और, एक बार और | ऐसा सुनकर महारानी हंस पड़ी | राजा
भोज ने कहा कि ऐसा मैंने क्या कह दिया, जो तुम हंस रही हो | रानी ने कहा कि इस
प्रश्न का उत्तर मेरी छोटी बहन देगी, जो कि पास के ही एक राज्य की महारानी है |
राजा भोज अपनी उस साली के पास पहुंचता है और उसको अपनी पत्नी की हंसी का रहस्य
पूछता है | उसकी साली कहती है कि मैं अभी गर्भवती हूँ और शीघ्र ही मेरे प्रसव होने
वाला है | प्रसव से मैं एक पुत्र को जन्म दूंगी | प्रसव के तुरंत बाद मेरी मृत्यु
हो जाएगी | बाद में मेरा पुनर्जन्म विदर्भ के महाराज के यहाँ पुत्री के रूप में
होगा | जब मैं विवाह योग्य हो जाऊंगी और मेरा विवाह निश्चित हो जाये तब तुम मेरे
पास आना | उस समय तक तुम्हें उत्तर पाने के लिए प्रतीक्षा करनी होगी | यह सुनकर राजा
भोज अपने राज्य को लौट आये और सभी घटनाक्रम पर नज़र रखने लगे |
वही हुआ, जैसा उनकी साली ने कहा था |
साली पुत्र को जन्म देकर मर गयी | उसकी मृत्यु के कुछ समय बाद ही राजा भोज को यह पता
भी चल गया कि विदर्भ के राजा के यहाँ एक कन्या ने जन्म लिया है | राजा भोज को बड़ा
अचरज हुआ | अधिक उत्सुकता के साथ वे उसके बड़ी होने और विवाह के निश्चित होने की
प्रतीक्षा करने लगे | काल की गति, राजा भोज की उस पत्नी का भी देहांत हो गया, जो
नहलाते समय हंस पड़ी थी | इधर राजा भोज को पता चलता है कि विदर्भ की राजकुमारी का विवाह
निश्चित हो गया है | राजा भोज तो इसी समय की दीर्घ अवधि से प्रतीक्षा कर रहे थे |
वे तुरंत ही घोड़े पर स्वर हो पहुँच गए, विदर्भ की राजकुमारी के पास और अपने प्रश्न
का उत्तर माँगा | राजकुमारी ने कहा कि आप धैर्य के साथ मेरी बात सुनिए | क्या आप
जानते हैं कि मेरा विवाह किस राजकुमार के साथ होना निश्चित हुआ है ? मेरा विवाह
उसी मेरे पूर्वजन्म के समय के मेरे उसी पुत्र के साथ होना निश्चित हुआ है, जिसको
मैंने तब जन्म दिया था | उस जन्म की मेरी बड़ी बहिन इसलिए हंसी थी क्योंकि वह भी अपने
पूर्वजन्म में आज मेरी तरह ही अपने पति की मां थी | जब आप उनके पुत्र थे तब नहाने से
बचने के लिए आप इधर उधर दौड़ा करते थे | जब वही मां आपकी नए जन्म में पत्नी बनी तब
आप उसके नहलाने से खुश हो रहे थे | इसलिए वह हंस पड़ी थी |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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