ज्ञानं
लब्ध्वा परां शांतिम् – 24-समापन कड़ी
सार-संक्षेप
–
इस प्रकार हम ज्ञान के बारे में सूक्ष्म रूप से
जानने के बाद कह सकते हैं कि कर्म-योग से भी शांति को तभी प्राप्त किया जा सकता
है, जब हमें ज्ञान का वास्तविक ज्ञान हो | ज्ञान को प्राप्त करने के बाद भी अगर हम
अपने मन के अनुसार चलते रहे तो फिर ऐसा ज्ञान अज्ञान ही कहलाने योग्य है | ज्ञान
को बुद्धि के समन्वय से विवेक पूर्वक आचरण में लेने से ही ज्ञान की सार्थकता है |
ज्ञान हमें संसार के जाल में फंसने से सदैव बचाए रखने में सहायक सिद्ध होता है, जिससे हम अपने वास्तविक
स्वरुप को पहचान सकें | हमारा वास्तविक स्वरुप ही परमात्मा का स्वरुप है, उससे
कहीं भी और किसी प्रकार से भिन्न नहीं है | कर्मों में आसक्ति, उनके फलों के साथ
बंध जाना और उनमें छुपे हुए दुःख को नहीं पहचान पाना, हमें ज्ञान प्राप्त करने से
वंचित कर देता है |
कर्मों के स्वरुप का ज्ञान हमें
कर्म-मार्ग से भी शांति प्राप्त करवा सकता है परन्तु परमशान्ति को उपलब्ध होने के
लिए हमारे लिए ज्ञान को भी प्राप्त कर उसका जीवन में सदुपयोग करते रहना आवश्यक है
| कर्म अविद्या से सम्बंधित है और ज्ञान विद्या से सम्बंधित है | अतः कर्म-योग और
ज्ञान योग को समझने के लिए ज्ञान और अज्ञान यानि विद्या-अविद्या के अंतर को भी समझना
होगा | इस अंतर को स्पष्ट करते हुए ईशावास्योपनिषद कहता है –
विद्यां
चाविद्यां च यस्तद् वेदोभयं सह |
अविद्यया
मृत्युं तीत् र्व़ा विद्ययामृतमश्नुते || ईशावास्योपनिषद-11||
अर्थात
जो मनुष्य ज्ञान के और कर्म के तत्व को, दोनों को साथ-साथ यथार्थ रूप से जान लेता
है, वह कर्मों के अनुष्ठान से मृत्यु को पार करके तथा ज्ञान के अनुष्ठान से अमृत
को भोगता है अर्थात परम शांति को प्राप्त कर लेता है |
कर्म-योग से मृत्यु को पार किया जा
सकता है परन्तु परमात्मा को पाने के लिए ज्ञान के साथ उसका समन्वय होना आवश्यक है
| इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि ज्ञान
परमशान्ति को प्राप्त करने के लिए कितना महत्वपूर्ण है | ज्ञान ही हमें परमात्मा
के साक्षात् स्वरुप का दर्शन कराता है | कर्म, ज्ञान और भक्ति तीनों एक दूसरे के
पूरक हैं और तीनों का समन्वय ही व्यक्ति के लिए परमशान्ति के द्वार खोलता है | अतः
आवश्यक है कि तीनों योगों को प्राप्त करने हेतु यथोचित साधन करते हुए परमात्मा तक
पहुँच बनाई जाय |
इस प्रकार हम आज कर्म मार्ग (गहना
कर्मणो गतिः) से होते हुए ज्ञान-योग (ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिम्) तक आ पहुंचे है
| इस यात्रा को अनवरत जारी रखते हुए आगे भक्ति-योग (मन्मना भव मद्भक्तो) की ओर
बढ़ते हैं | आइये ! साथ-साथ चलें |
कल
से – मन्मना भव मद्भक्तो......
प्रस्तुति
– डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः
शरणम् ||
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