Sunday, May 21, 2017

मन्मना भव मद्भक्तो - 17

मन्मना भव मद्भक्तो – 17
       कर्म और ज्ञान के बाद भी परमात्मा को पाने के लिए भक्ति पर आना आवश्यक है | कर्म कुछ किये हुए का अहंकार पैदा करता है, कर्तापन के कारण, जबकि ज्ञान बहुत कुछ जान लेने का अहंकार पैदा करता है | भक्ति में न तो कुछ जानना होता है और न ही कुछ करना, केवल मानना होता है, परमात्मा के अस्तित्व को मानकर स्वीकार करना होता है | जिस दिन आपने ज्ञान और कर्म-योग के साथ-साथ परमात्मा को मान लिया, बिना किसी देरी के आप भक्ति को उपलब्ध हो गए हो | इसीलिए एक कर्म योगी को भी भक्त होना आवश्यक है और एक ज्ञानी को भी | भगवान श्री कृष्ण गीता में कर्म और ज्ञान का वर्णन करने के बाद  पर अर्जुन को स्पष्ट रूप से भक्त होने का कह देते हैं |
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायण: ||गीता-9/34||
अर्थात मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर | इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा | यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के मध्य में कहा गया है | यह गीता के 9 वें अध्याय का अंतिम श्लोक है, और गीता में कुल 18 अध्याय है | गीता के पूर्वार्ध समाप्ति तक भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कर्म, ज्ञान, विज्ञान, संन्यास आदि के बारे में शिक्षित करते रहे हैं | ज्ञान के मध्य में वे अर्जुन को भक्त बनने का कह देते हैं | इसका क्या कारण है ?
           कर्म हो, ज्ञान हो अथवा संन्यास, जब तक उसको करने, जानने अथवा होने का उद्देश्य व्यक्ति को मालूम न हो तब तक ये सभी व्यक्ति को भ्रमित ही करते हैं | आज की शिक्षा पद्धति भी इस प्रकार से भ्रमित होने का स्पष्ट उदाहरण है | हमारी युवा पीढ़ी शिक्षा को अपने स्वभावानुसार चयन न करके उपलब्धि के आधार पर अथवा अन्य कई कारणों से चयन कर रहे हैं | जिस किसी बच्चे का स्वभाव सांस्कृतिक गतिविधियों अथवा अन्य विधाओं को प्राप्त करने के अनुसार हो, उसको इंजीनियर अथवा डॉक्टर बनाने का प्रयास किया जा रहा है | उद्देश्यहीन शिक्षा मनुष्य में भ्रम पैदा करती है और भ्रम के कारण वह दिशाहीन हो जाता है | बच्चे की गतिविधियों का सूक्ष्म निरीक्षण करते हुए उसकी रुचि के अनुसार शिक्षा का क्षेत्र चुनना चाहिए, जिससे उसकी संभावनाओं को पर लग सके | अर्जुन युद्ध से पलायन करने की सोच रहा है | ज्ञान और कर्मयोग में से किसी एक का चयन वह नहीं कर पा रहा है | भगवान जानते हैं कि भक्ति ही अर्जुन के लिए सर्वोत्तम मार्ग है क्योंकि भक्ति भय और भ्रम दोनों से ही व्यक्ति को मुक्त कर देती है | कर्म और ज्ञान, यहाँ तक की संन्यास और देवत्व भी भ्रम और भय से मुक्त नहीं है | ऐसे में ज्ञान के बीच रास्ते में ही भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को भक्त होने का कह देते है | अर्जुन को भक्त होने का कहने के बाद भगवान श्री कृष्ण उसे भक्ति के रास्ते पर चलने के लिए आगे के अध्यायों में उसका मार्गदर्शन करते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

No comments:

Post a Comment