Thursday, May 25, 2017

मन्मना भव मद्भक्तो - 21

मन्मना भव मद्भक्तो – 21  
         वास्तव में देखा जाये तो मन चाहे कल्पना ही हो परन्तु है यह भी परमात्मा की ही एक कल्पना | परमात्मा अपने आनन्द के लिए एक से अनेक में विभक्त हुए | यह विचार सर्वप्रथम उनके मन में ही आया | उनका मन तो अमन है, ऐसे में वे कभी भी विचलित नहीं होते बल्कि सदैव आनंदमय ही बने रहते हैं | इसी कारण से उन्हें सच्चिदानन्दघन कहा गया है | अपने आनन्द के लिए वे प्रकृति और पुरुष के रूप में विभक्त होकर व्यक्त हुए | एक परमात्मा ही प्रकृति और पुरुष दोनों है, हमें सांसारिक दृष्टि से वे दो में विभक्त हुए प्रतीत होते है परन्तु वास्तविकता में वे दो न होकर एक ही हैं | वे जन्म-मरण से मुक्त हैं परन्तु हमारे संसार की दृष्टि से हम इन्हें भी जन्मने और मरने वाला मान बैठे हैं | यह विभाजन हमारी दृष्टि का ही भेद है, वास्तव में कोई भेद है नहीं | यह भेद सांसारिक मन के कारण है, परमात्मा में लगे मन के अनुसार कोई भेद नहीं है | इस बारे में गीता में भगवान श्री कृष्ण एक स्थान पर अर्जुन को कहते भी है |
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः |
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् || गीता-7/24||
अर्थात बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अविनाशी परम भाव को न जानते हुए मन-इन्द्रियों से परे मुझ सच्चिदानन्दघन परमात्मा को मनुष्य की भांति जन्म लेकर व्यक्ति भाव को प्राप्त हुआ मानते हैं |
           गीता के इस श्लोक के अनुसार परमात्मा मन और इन्द्रियों से परे हैं | जो मन परमात्मा में लगा हुआ है वह परमात्म स्वरूप ही होकर अमन हो जाता है | जब मन व्यक्ति और संसार के साथ होता है, वह विस्तार पाकर इन्द्रियों के रूप में व्यक्त होकर विभिन्न प्रकार के सुख-दुःख का कारण बनता है | विभिन्न इन्द्रियां और यह भौतिक शरीर मन का ही विस्तार है, जैसा कि स्वामी शिवानन्द कहते हैं कि हमारा यह शरीर मन की ही छाया है | इसी कारण से आत्मा और शरीर को आपस में मन ही जोड़ता है | हम शारीरिक सुख के वशीभूत हो जाते है, तब इस भौतिक शरीर और इन्द्रियों का मन पर प्रभुत्व आत्मा कि तुलना में अधिक हो जाता है | इस प्रकार शरीर के प्रभुत्व वाला मन ही अस्थिर रहता है | जब आत्मा का मन पर प्रभुत्व हो जाता है, तब यही मन स्थिर होकर अमन हो जाता है | अतः आवश्यक है कि मन को शरीर और संसार से विमुख करते हुए परमात्मा की ओर करें और इस कार्य को करने के लिए भक्ति-मार्ग ही श्रेष्ठतम मार्ग है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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