गहना कर्मणो गतिः – समापन कड़ी
अब
प्रश्न यही उठता है कि इस आत्म-बल को जाग्रत कैसे किया जा सकता है ? गीता में इस
बल को जाग्रत करने के लिए दो मार्ग बताये गए हैं, ज्ञान और भक्ति | भक्ति-मार्ग श्रद्धा
और विश्वास का पथ है | युवा पीढ़ी भक्ति–मार्ग पर जाने के स्थान पर ज्ञान–मार्ग को अधिक
महत्त्व दे रही है | आज के भौतिक युग में भक्ति-मार्ग पर चलने के लिए भी ज्ञान का होना
आवश्यक है | यही कारण है कि भक्ति-मार्ग सबसे सरल होने के बाद भी इसका चयन प्रायः लोग
शारीरिक क्षमता चुकते समय अर्थात जीवन के उतरार्ध अर्थात वृद्धावस्था में ही करते हैं,
जबकि हमें यह समझना होगा कि भक्ति-मार्ग को युवावस्था में अपनाने से व्यक्ति को आत्म-बोध
(Self-realization) शीघ्र होता है | युवावस्था में इस मार्ग को आत्मसात करने वाले
आदिगुरु शंकराचार्य और स्वामी विवेकानन्द के उदाहरण मेरे इस कथन की पुष्टि करते हैं
| अगर कर्म के साथ ज्ञान जुड़ जाता है तो व्यक्ति को भक्ति सरलता से उपलब्ध हो सकती
है | दूसरे शब्दों में कहूँ तो कह सकता हूँ कि कर्म को भक्ति से जोड़ने वाली एक मात्र
कड़ी ज्ञान ही है | कर्म से भक्ति की ओर जाने के लिए ज्ञान का होना आवश्यक है |
गीता में इसीलिए भगवान श्री कृष्ण कर्म को स्पष्ट करने के बाद भक्ति से पहले
ज्ञान को स्पष्ट किया है | इसे ज्ञान-मार्ग कहा जाता है| हम सब इस संसार में मनुष्य रूप में आकर भी सुषुप्ति अवस्था में
पड़े हुए है और यह सुषुप्ति अवस्था ही अज्ञान की अवस्था है | हमें अपने आत्म-बल का ज्ञान नहीं है | ज्ञान हमें अपने बल से परिचित करा देता है. जो हमारे
कर्म-बंधन से मुक्त होने के लिए आवश्यक है | जिस दिन हम अपने बल को पहचान लेंगे, उस दिन हमारे कर्म भी बदल जायेंगे | साथ ही साथ यह
ज्ञान हमें संसार से निवृत करते हुए भक्ति की और भी प्रवृत कर देगा | अंततः हमारे
प्रवेश के लिए परमात्मा का द्वार खुल ही जायेगा | तो आइए, कर्म-मार्ग पर आगे बढ़ते हुए भक्ति की ओर जाने से पूर्व थोड़ी चहलकदमी ज्ञान-मार्ग पर भी कर लें |
कल से - ‘ज्ञानं लब्धवा परां शांतिम्’
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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