Monday, April 3, 2017

गहना कर्मणो गतिः -19

गहना कर्मणो गतिः -19
            कर्मों का परिणाम तभी नहीं मिलता जब कर्म अथवा उसके फल का त्याग कर दिया गया हो अन्यथा प्रत्येक कर्म का परिणाम मिलता अवश्य है और वह भी देह त्यागने के पश्चात् | कर्मफल का त्याग कर देने से मनुष्य को असीम शांति प्राप्त होती है, ‘त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्’ (गीता-12/12) और परम शांति ही मुक्त होने का प्रमाण है | ऐसी मुक्त अवस्था में न तो कोई कर्म है, न कर्ताभाव और न ही परिणाम | परन्तु कर्मों का त्याग पूर्ण रूप से किया ही नहीं जा सकता इसलिए परम शांति को उपलब्ध होने के लिए कर्मफल का त्याग करना ही उचित है | श्रीमद्भगवद्गीता में कर्म के त्याग और कर्मफल के त्याग को स्पष्ट करते हुए कहते हैं –
न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः |
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागित्यभिधीयते ||गीता-18/11||
अर्थात शरीरधारी किसी भी मनुष्य के द्वारा सम्पूर्णता से सब कर्मों का त्याग संभव नहीं है, इसलिए जो कर्मफल का त्यागी है, वही त्यागी है | इस श्लोक से यह स्पष्ट है कि इस बात में शक है कि कर्म का त्याग पूर्ण रूप से किया जा सकता है | अतः परमात्मा कहते हैं कि या तो मनुष्य को कर्म करते हुए अपने सभी कर्मों को मुझमें अर्पित कर देना चाहिए अथवा फिर कर्मफल का त्याग कर देना चाहिए | इस प्रकार वह परम शांति को उपलब्ध हो सकता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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