ज्ञानं लब्ध्वा परां
शांतिम् – 9
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं –
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रिय
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ज्ञानं लब्ध्वा परां
शान्तिमचिरेणाधिगच्छति || गीता-4/39||
अर्थात जिसने
इन्द्रियों को नियंत्रित कर लिया है, जो सदैव तत्पर रहता है और जो श्रद्धावान है,
वही मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है | ऐसा मनुष्य ज्ञान को प्राप्त कर बिना किसी
विलम्ब के, तत्काल ही परम शांति को प्राप्त हो जाता है |
ज्ञान शांति तो प्रदान करता है, परन्तु ज्ञान
किस प्रकार की योग्यता रखने वाले व्यक्ति को प्राप्त होने पर ही शांति प्रदान करता
है, यह इस श्लोक में स्पष्ट किया गया है | व्यक्ति को ज्ञान और परमात्मा के प्रति
श्रद्धा रखना आवश्यक है | यह श्रद्धा ज्ञान को ग्रहण करने के लिए व्यक्ति को
सक्रिय रखती है | बिना ऐसी सक्रियता और तत्परता के ज्ञान प्राप्त होना असंभव है |
मनुष्य का मन सदैव ही इन्द्रिय भोगों की ओर दौड़ता रहता है, जिस कारण से उसकी
श्रद्धा स्थिर नहीं हो पाती है और ज्ञान पाने के प्रति तत्परता भी नहीं रहती | अतः
सर्वप्रथम अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण स्थापित करना आवश्यक है | जितेन्द्रिय
पुरुष ही ज्ञान प्राप्ति को तत्पर हो सकता है और ज्ञान के प्रति श्रद्धावान भी |
संसार से आसक्ति हटाने के लिए जितेन्द्रिय होना आवश्यक है | जितेन्द्रिय होने का
अर्थ यह नहीं है कि इन्द्रियों को बलपूर्वक दबाया जाय | ऐसा करना तो स्वयं के लिए
और अधिक संकट पैदा कर लेना है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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