Sunday, April 23, 2017

ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिम् - 13

ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिम् – 13  
             भौतिक सुख संसार के पदार्थ से जुड़ा है और आध्यात्मिक सुख आत्मा से जुड़ा है | आत्मा अर्थात हमारा संसार से सम्बन्ध नहीं है बल्कि हमारा सम्बन्ध सीधे परमात्मा से है | इसीलिए आध्यात्मिकता हमें परम शांति प्रदान करती है जब कि सांसारिकता केवल इस जड़ शरीर को भौतिक सुख |  हम व्यक्ति हैं अर्थात परमात्मा के व्यक्त रूप | हम शरीर नहीं है, हमारा शरीर मात्र भौतिक पदार्थ है | संसार का सुख शांति नहीं दे सकता, केवल आध्यात्मिकता ही परम शांति प्रदान कर सकती है | अतः हमें सांसारिकता में न फंसते हुए आध्यात्मिक होना चाहिए | इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि शारीरिक सुख की कामना ही हमें शांति प्राप्त कराने में में प्रमुख बाधा है |
          इसके बाद शांति प्राप्त होने में बाधक दूसरा कारण है – व्यक्ति की लोभ प्रवृति | व्यक्ति अपने जीवन में जितना मिल जाता है, उससे कभी भी संतुष्ट नहीं होता | उसके मन में और अधिक प्राप्त कर लेने की कामना सदैव बढ़ती रहती है | लोभ चाहे धन-सम्पति का हो, शारीरिक सुख का हो अथवा किसी अन्य का, सभी प्रकार के लोभ व्यक्ति को अशांत ही करते हैं | लोभ व्यक्ति को और अधिक कर्म करने को प्रेरित करता है और प्रत्येक कर्म कर्मफल से अवश्य ही जुडा होता है | कर्म के स्वरुप को अपने लोभवश मनुष्य समझ नहीं पाता और कामनाओं को पूरा करने के लिए वह कर्म के स्तर को गिरा देता है अर्थात कामनाओं को पूरा करने के लिए वह सकाम–कर्म और विकर्म तक करने को तत्पर रहता है |
                      प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए सुख की कामना करता है और जब उसे सुख मिल जाता है तब वह सुख सदैव ही उसे अपर्याप्त लगता है, जिससे उसके भीतर लोभ-वृति पैदा होती है | इससे कामनाओं का विस्तार होता है | अगर एक कामना पूरी हो जाती है, तो उसके भीतर मद (अहंकार) और मोह पैदा हो जाता है और अगर किसी कारण से कामना पूर्ति नहीं हो पाती तो क्रोध पैदा होता है | दोनों ही परिस्थितयां नरक के मार्ग हैं अर्थात अशांत जीवन के आधार है |
     रामचरितमानस में बाबा तुलसी इसको स्पष्ट करते हैं और कहते हैं – ‘काम क्रोध मद लोभ सब, नाथ नरक के पंथ’ (5/38) | अतः यह आवश्यक है कि हम अपने मन पर नियंत्रण रखते हुए कामनाओं को जन्म न लेने दें तभी शांति की ओर अग्रसर हो सकते हैं | मन, इन्द्रियों और कामनाओं पर नियंत्रण बुद्धि के द्वारा ही संभव है और बुद्धि से ज्ञान को विवेक बनाकर ऐसा करना संभव बनाया जा सकता है | इस प्रकार कहा जा सकता है कि ज्ञान से भी शांति को प्राप्त कर लेना संभव है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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