गहना कर्मणो गतिः – 18
कर्मों से गति –
मनुष्य द्वारा किये जाने वाले सभी कर्मों का फल अवश्य ही मिलता है और यह फल
प्रायः उसे नयी योनि में ही उपलब्ध होता है | इसे मनुष्य के जीवन की विडंबना ही
कहा जा सकता है कि वह कर्म आज करता है और मिलने वाले फल को आज के कर्म का ही
परिणाम मानता है | स्वामी शिवानन्द कहते हैं कि कर्म ही कारण है, कर्म ही कार्य है
और उस कार्य का परिणाम भी फिर कर्म ही है |
पूर्वजन्म में किये गए कर्म, नए जन्म में किये जाने वाले कर्मों का कारण
बनते हैं | नए जन्म में किसी कार्य को करने के लिए नए कर्म ही कारण होते हैं जिससे
कर्म सम्पादित होते हैं | इन कर्मों का संचय होकर पुनः अगले जन्म में किये जाने
वाले कर्मों का कारण बनते हैं | कर्मों के परिणाम से जो फल मिलता है, वह कर्म करने
से ही मिलता है | इस प्रकार एक साधारण सी दिखाई देने वाली कर्मों की गति बड़ी ही
गहन है, ऐसी बात गीता में कही गयी है |
कर्मों की गति अनवरत है, उसका परिणाम चाहे कैसा भी हो, कर्म को रोकना अथवा
न करना संभव हो ही नहीं सकता | हाँ, कर्म फल का त्याग अथवा कर्म को परमात्मा के
निमित्त करना मान लेने से परिणाम नहीं भी मिल सकते, परन्तु ऐसा होना अथवा करना
आसान नहीं है | श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं –
अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम् |
भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तू सन्न्यासिनां
क्वचित् ||गीता-18/12||
अर्थात कर्मफल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के
कर्मों का फल अच्छा, बुरा और मिला हुआ - ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात्
अवश्य होता है, किंतु कर्मफल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल किसी
भी काल में नहीं होता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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