Sunday, April 2, 2017

गहना कर्मणो गतिः -18

गहना कर्मणो गतिः – 18
कर्मों से गति –
        मनुष्य द्वारा किये जाने वाले सभी कर्मों का फल अवश्य ही मिलता है और यह फल प्रायः उसे नयी योनि में ही उपलब्ध होता है | इसे मनुष्य के जीवन की विडंबना ही कहा जा सकता है कि वह कर्म आज करता है और मिलने वाले फल को आज के कर्म का ही परिणाम मानता है | स्वामी शिवानन्द कहते हैं कि कर्म ही कारण है, कर्म ही कार्य है और उस कार्य का परिणाम भी फिर कर्म ही है |  पूर्वजन्म में किये गए कर्म, नए जन्म में किये जाने वाले कर्मों का कारण बनते हैं | नए जन्म में किसी कार्य को करने के लिए नए कर्म ही कारण होते हैं जिससे कर्म सम्पादित होते हैं | इन कर्मों का संचय होकर पुनः अगले जन्म में किये जाने वाले कर्मों का कारण बनते हैं | कर्मों के परिणाम से जो फल मिलता है, वह कर्म करने से ही मिलता है | इस प्रकार एक साधारण सी दिखाई देने वाली कर्मों की गति बड़ी ही गहन है, ऐसी बात गीता में कही गयी है |
           कर्मों की गति अनवरत है, उसका परिणाम चाहे कैसा भी हो, कर्म को रोकना अथवा न करना संभव हो ही नहीं सकता | हाँ, कर्म फल का त्याग अथवा कर्म को परमात्मा के निमित्त करना मान लेने से परिणाम नहीं भी मिल सकते, परन्तु ऐसा होना अथवा करना आसान नहीं है | श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं –
अनिष्टमिष्टं मिश्रं च त्रिविधं कर्मणः फलम् |
भवत्यत्यागिनां प्रेत्य न तू सन्न्यासिनां क्वचित् ||गीता-18/12||
अर्थात कर्मफल का त्याग न करने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल अच्छा, बुरा और मिला हुआ - ऐसे तीन प्रकार का फल मरने के पश्चात् अवश्य होता है, किंतु कर्मफल का त्याग कर देने वाले मनुष्यों के कर्मों का फल किसी भी काल में नहीं होता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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