Friday, April 28, 2017

ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिम् - 18

ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिम् – 18
                 ज्ञान जब विवेक में परिवर्तित हो जाता है, तभी वह वास्तव में व्यक्ति ज्ञानी कहलाता है अन्यथा ज्ञान बोझ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं होता | ‘ज्ञानं भारः क्रिया बिना’ अर्थात ज्ञान का अगर उपयोग नहीं किया जाये, तो वह बोझ ही है | जब ज्ञान बोझ बन जाता है, वह अज्ञान ही कहलाता है | संसार में प्रवृति अज्ञान है जबकि सत्य को पा लेना ही ज्ञान है | ज्ञान को बोध बनायें, बोझ नहीं |
ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मन: |
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ||गीता-5/16||
अर्थात जिनका अज्ञान परमात्मा के तत्वज्ञान द्वारा नष्ट कर दिया गया है, उनका वह ज्ञान सूर्य के सदृश उस सच्चिदानंदघन परमात्मा को प्रकाशित कर देता है |
           व्यक्ति में अज्ञान वह है, जो संसार में सुख खोजता है, ज्ञान वह है जो परमात्मा को पाना चाहता है | सुख असत्य है और दुःख का बीज भी, जबकि सत्य परमात्मा और परम शांति को उपलब्ध होना है | ज्ञान आपको प्रकाशित कर देता है, सत्य से आपका परिचय करा देता है और मुक्त करता है जबकि अज्ञान आपको अन्धकार की ओर धकेल देता है, बंधन में डाल देता है | बंधन अशांति पैदा करता है जबकि मुक्त होना ही परम शांति को उपलब्ध होना है |
          अभी तक किये गए विवेचन से स्पष्ट है कि ज्ञान को आत्मसात कर लेने के उपरांत ही कर्मों के स्वरुप को परिवर्तित करते हुए भक्ति को उपलब्ध हुआ जा सकता है | बिना ज्ञान के कर्मों में कुशलता लाना लगभग असंभव है | मनीषियों का कहना है कि ज्ञान मार्ग पर चलकर भी भक्ति को प्राप्त हुआ जा सकता है और भक्ति-मार्ग पर चलकर भी ज्ञान पाया जा सकता है | वे कहते हैं कि ज्ञान-मार्ग से भक्ति-मार्ग अधिक सरल है | मेरा मानना है कि आधुनिक युग में जहाँ शिक्षा केवल रोजगारोन्मुखी हो चुकी है, वहां सीधे भक्ति-मार्ग को पकड़ना जरा अधिक मुश्किल है | ऐसे में ज्ञान-मार्ग को साधन बनाते हुए भक्ति को अधिक शीघ्रता से उपलब्ध हुआ जा सकता है | इस श्रृंखला के प्रारम्भ में मैंने कहा था कि कर्म-मार्ग और भक्ति-मार्ग को जोड़ने वाला मार्ग ही ज्ञान-मार्ग है | आइये, अब इस बात पर भी थोडा चिंतन कर लेते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति - डॉ.प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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