ज्ञानं लब्ध्वा परां
शांतिम् – 3
बुद्धि
(Intelligence) -
हमारी बुद्धि
ही ज्ञान
(Knowledge) प्राप्त करती है, उसे विकसित (Develop) करती है और उसका उपयोग (Use) करती है | आप में
उपस्थित ज्ञान का उपयोग करना आपकी बुद्धि पर निर्भर (Depend) करता है |
बुद्धि भ्रष्ट (Corrupt) हो जाती है, तो यही ज्ञान
समय व आवश्यकता पड़ने पर भी उपयोगी नहीं होता | बुद्धि अगर सात्विक (Righteous) रही तो इसी ज्ञान (Knowledge) को विवेक (Wisdom) बनाकर सही
कार्य में उसका उपयोग कर लेती है | भौतिक शरीर के सभी तत्व जड़ प्रकृति के हैं और बुद्धि
भी इनसे भिन्न नहीं है |
बुद्धि के जड़ तत्व (Founder element) होने के कारण ही ज्ञान का उपयोग प्रायः हम अपने निजी (Self) स्वार्थ और स्वयं के शरीर की सेवा के लिए ही करते
हैं | हमारी बुद्धि अगर सात्विक हुई तो यही ज्ञान संसार की सेवा का आधार बन जाता है
| सात्विक बुद्धि कैसी होती है, इसको भगवान श्रीकृष्ण गीता में इस प्रकार स्पष्ट करते
हैं –
प्रवृत्तिं च निवृत्तिं
च कार्याकार्ये भयाभये |
बन्धं मोक्षं च या वेत्ति
बुद्धिः सा पार्थ सात्त्विकी ||गीता-18/30 ||
अर्थात हे पार्थ !
जो बुद्धि प्रवृत्ति-मार्ग (Desireful path)और निवृति-मार्ग (Renunciation) को, कर्तव्य (Dutiful) और अकर्तव्य (Undutiful) को, भय (Apprehension) और अभय (Fearlessness) को तथा बंधन (Bondage) और मोक्ष (Salvation) को यथार्थ रूप (Correctly) से जानती (Understand ) है, वह सात्विक बुद्धि (Righteous intelligence) कहलाती है |
यहाँ प्रवृति-मार्ग (Desireful path) से तात्पर्य संसार व शरीर में आसक्ति होना है
जबकि निवृति-मार्ग (Renunciation) से तात्पर्य संसार व शरीर से विमुख (Untoward) होकर एक परमात्मा की शरण और संसार की सेवा में लग
जाना है | कर्तव्य (Duty) वह है,
जो हम अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करते हैं | ऐसे कर्म शास्त्रोक्त और विहित (Prescribed)
होते हैं, जबकि
अकर्तव्य में कर्म प्रायः शास्त्र विरुद्ध और निषिद्ध (Prohibited) होते हैं | आवश्यकता है कि हम अपना कर्तव्य
पहचानें | कर्तव्य को पहचानने में बुद्धि की भूमिका ही महत्वपूर्ण होती है |
व्यक्ति को सदैव मृत्यु का भय, कुछ खोने का भय सताता रहता है | इसके अतिरिक्त कई
कारण और भी है जो भय पैदा करते हैं | बुद्धि ज्ञान का सदुपयोग कर हमें भयमुक्त
करती है | बंधन और मोक्ष, हमारी मानसिक अवस्था के दो नाम है | जब हम किसी में
आसक्त रहते हैं, हम बंधन में रहते है और जब अनासक्त अवस्था में रहते है, मुक्त
रहते हैं | बंधन और मोक्ष का ज्ञान भी हमें हमारी बुद्धि ही कराती है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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