गहना कर्मणो गतिः -20
कर्म की गति के बारे में यह स्पष्ट है कि अच्छा, बुरा अथवा मिश्रित परिणाम
अवश्य ही प्राप्त होता है | कर्म तीन प्रकार के होते हैं – सात्विक, राजसिक और
तामसिक | तीनों कर्मों को गीता के अंतिम अध्याय में स्पष्ट किया गया है | तीनों
प्रकार के कर्म गुण और स्वभाव के अनुसार ही संपन्न हो सकते हैं और ये गुण और स्वभाव
मनुष्य जीवन में किये गए कर्मों के परिणाम प्रायः नए जन्म में ही उपलब्ध होते हैं
| इस प्रकार पूर्वजन्म के कर्मों का परिणाम हमें नए जन्म में उपलब्ध होते हैं, इसे
ही कर्मों की गति कहा जाता है | यह कर्मों की गति कैसी होती है, इसको स्पष्ट करते
हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं –
ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्ये तिष्ठन्ति
राजसाः |
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ||
गीता-14/18 ||
अर्थात सत्वगुण में स्थित पुरुष स्वर्गादि उच्च
लोकों को जाते हैं, रजोगुण में स्थित राजस पुरुष मध्य में अर्थात मनुष्य लोक में
ही रहते हैं और तमोगुण में स्थित पुरुष अधोगति को प्राप्त होते हैं अर्थात उन्हें
कीट, पशु आदि नारकीय योनियाँ भोगनी पड़ती है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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