ज्ञानं लब्ध्वा परां
शांतिम् – 6
जो ज्ञान हम विद्यालयों में जाकर
प्राप्त करते हैं, उसे शिक्षा कहा जाता है | शिक्षा हमें सीख देती है, जो जीवन में
आगे बढ़ने के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होती है | शिक्षा देने वाले हमें कई मिल जाते
हैं और उनको हम शिक्षक कहते हैं, जबकि ज्ञान केवल गुरु ही दे सकता है | शिक्षा सीख
है तो ज्ञान सत्य है | हमारा शिक्षक एक साधारण व्यक्ति अथवा सद्साहित्य हो सकता है
परन्तु गुरु तो साक्षात् परमात्मा स्वरुप है, वही गोविन्द है और न केवल गोविन्द ही
बल्कि उससे भी कहीं अधिक ऊपर | तभी तो कबीर कह उठते हैं –
गुरु गाविंद दोउ खड़े, काके लागूं
पांय |
बलिहारी गुरु आपने,गोविन्द दियो
बताय ||
गुरु गोविन्द से भी पहले होता है, शिक्षक उसकी
कहीं से भी बराबरी नहीं कर सकता | सीख देने वाले से सत्य का साथ करा देने वाला
सदैव ही महान होता है | गुरु के बारे में कहा गया है –
गुरुबुध्यात्मनो
नान्यत् सत्यं सत्यं वरानने |
तल्लाभार्थं
प्रयत्नस्तु कर्तवयशच मनीषिभिः ||गुरु गीता-1/25||
अर्थात आत्मा में
गुरुबुद्धि के अतिरिक्त कुछ भी सत्य नहीं है, सत्य नहीं है | अतः आत्म-ज्ञान
प्राप्त करने के लिए बुद्धिमानों को सदैव प्रयत्न करते रहना चाहिए | गुरु हमारे
स्व-चेतन से भिन्न नहीं है | बुद्धिमान पुरुषों को ज्ञान लेने के लिए गुरु के पास
जाना चाहिए | गुरु सर्वोच्च ज्ञान देता है, शिक्षक केवल शिक्षा तक ही सीमित है |
शिक्षा और ज्ञान में अंतर है | भौतिक शिक्षा अनुकरण से सीखी जाती है जिसका सम्बन्ध
ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों, मन और बुद्धि तक ही सीमित है | लेकिन जो बुद्धि
से भी परे है और जो आपकी आत्मा से जुडा है और सत्य के अनुभव पर आधारित है, वही
ज्ञान है | शिक्षा कई बार अहंकार पैदा कर देती है क्योंकि शिक्षित व्यक्ति को यश
मिलता है, लेकिन ज्ञान अहंकार को दूर करता है क्योंकि ज्ञान प्राप्त होने के बाद
व्यक्ति स्व से जुड़ जाता है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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