ज्ञानं लब्ध्वा परां
शांतिम् – 8
ज्ञान का विलोम शब्द है अज्ञान |
प्रायः हम अज्ञान को ज्ञान समझने की भूल कर बैठते हैं, अतः सर्वप्रथम हमें इन
दोनों में अंतर समझना आवश्यक है | जिस ज्ञान को प्राप्त कर भी सदुपयोग नहीं करें
अथवा जीवन में न उतारें, सारा का सारा अज्ञान है | दोनों की अपनी अपनी
विशिष्टतायें हैं | दोनों की प्रमुख विशेषताओं को संक्षेप में बतलाने का प्रयास कर
रहा हूँ, जिसको समझकर हम ज्ञान को स्पष्टतः समझ पाएंगे |
जिसके कारण स्वार्थ, विनाश, क्रूरता,
अशांति और भय में वृद्धि हो, वह अज्ञान है किंतु जो व्यक्ति को उदार, निर्भीक,
सहनशील और विनम्र बनाये, वही ज्ञान है | अज्ञान की शक्तियां दुरुपयोग करने हेतु
हमें प्रेरित करती है, किंतु जो शक्ति अपने सामर्थ्य के प्रति हमें अपने
उत्तरदायित्वों को समझाए और जो न केवल अपने अपितु अपने से भी पहले संसार के कल्याण
हेतु प्रोत्साहित करे, वही ज्ञान है | ज्ञान का मूल उद्देश्य ही परोपकार और सृजन
है | दूसरों की भावना को समझना, उनका आदर करना, ज्ञान है | ज्ञान हमें दूसरों के
सुख-दुःख के प्रति संवेदनशील बनाता है | जो दूसरों की भावनाओं का अनादर करे, भला
वह ज्ञान कैसे हो सकता है ? अज्ञान के कारण व्यक्ति सांसारिकता में बंधता जाता है
और मोह-माया में उलझता जाता है | अज्ञान परम सत्य से दूर ले जाने का माध्यम है
जबकि ज्ञान हमें परम सत्य को प्राप्त कराता है |
अल्प रूप से कहूँ तो यह कहा जा
सकता है कि जो सांसारिकता का ज्ञान कराये, मोह, ममता, आसक्ति, क्रोध, अहंकार आदि
विकारों में उलझाकर रख दे, वह अज्ञान है | उसे ज्ञान कदापि नहीं कहा जा सकता | जो
परम सत्य से साक्षात्कार करा दे, परमात्मा की तरफ अग्रसर कर दे, केवल वही ज्ञान है
| अज्ञान हमें सदैव बाहर भीतर दोनों ही ओर से अशांत बनाये रखता है | ज्ञान शांति
प्रदान करता है | आइये ! हम भी जानें कि ज्ञान कैसे शांति प्रदान करता है ?
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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