गहना कर्मणो गतिः -25
इस प्रकार रुकी हुई कर्मों में गति को कैसे वापिस गति प्रदान की जा सकती है
? कर्मों को गति प्रदान करना बिना परमात्मा के सहयोग के संभव नहीं है | परमात्मा आपके
भीतर ही बैठे हुए हैं , आपकी आत्मा के रूप में, शक्ति या बल के रूप में अर्थात ब्रह्म-बल
ही आत्म-बल बनकर ही परमात्मा आपके भीतर छुपा हुआ है | ब्रह्म-बल, आपका अपना आत्म-बल
ही है और इस बल का उपयोग कर कर्मों के स्वरूप को परिवर्तित करते हुए उन्हें गति दी
जा सकती है | महर्षि विश्वामित्र क्षत्रिय कुल में पैदा हुए थे | उन्हें अपने क्षत्रिय-बल
पर गर्व था परन्तु वशिष्ठ के ब्रह्म-बल के सामने वे परास्त हो गए थे | फिर उन्होंने
सभी बलों के बल, ब्रह्म-बल को प्राप्त करने के लिए तपस्या की और ब्रह्मर्षि हो गए |
धिग्बलं क्षत्रियबलं ब्रह्मतेजो बलं बलम् |
एकेन ब्रह्मदंडेन सर्वास्त्राणि हतानि में || वाल्मीकि रामायण-1/56/23||
अर्थात क्षत्रिय बल पर गर्व करना धिक्कार है | ब्रह्म का बल ही वास्तव में सब बलों का बल है जो
संसार के सभी बलों को समाप्त कर देता है |
वाल्मीकि रामायण का यह श्लोक विश्वामित्र के द्वारा कहा गया है | ब्रह्म के बल को प्राप्त कर व्यक्ति ब्राह्मण
कहलाता है | इस ब्रह्म के बल को
कोई भी योग्य व्यक्ति, चाहे किसी भी वर्ण का हो, प्राप्त कर सकता है | ब्रह्म-बल ही आत्म-बल है, जिसके समक्ष सभी बल गौण हैं | यह सभी आधारभूत बलों का बल है | विज्ञान अब मान रहा है कि सभी चारों आधारभूत बलों का एक
पांचवां बल और है, जो इन सब बलों का
जनक है |यह पांचवां बल ही ब्रह्म-बल
ही आत्म-बल है, जो हम सभी के भीतर छुपा हुआहै | इस बल को अर्थात आत्म-बल को जाग्रत करने की आवश्यकता है | इससे ही हम कर्मों की
गति में कर्मों का स्वरूप परिवर्तित करते हुए ला सकते हैं |
कल समापन कड़ी
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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