ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिम् – 10
इन्द्रियों का
स्वाभव है कि वह भोगों को उपलब्ध कराने के लिए, उनकी ओर दौड़ेगी ही | नियंत्रण तो
आपको अपने मन पर करना होगा, जो विषय-भोगों के प्रति आसक्ति-भाव रखता है | इसी
आसक्ति के कारण मन में कामनाएं, इच्छाए और वासनाएं जन्म लेती है | मन को नियंत्रण
में रखना बहुत ही मुश्किल है | उसको नियंत्रण में रखने के लिए मन में कामनाओं को ही
उठने देने से रोकना होगा | भगवान श्री कृष्ण गीता में
कहते हैं –
एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना |
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम् || गीता-3/43||
अर्थात बुद्धि से सूक्ष्म आत्मा को जानकर हे महाबाहो ! अपनी बुद्धि
के द्वारा इस मन को वश में करके तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल |
अज्ञान हमारे मन
को बुद्धि पर अधिक प्रभावी बना देता है, जिस कारण से हमारे भीतर विवेक पैदा नहीं
हो पाता | आत्मा बुद्धि से भी सूक्ष्म है, और वह आत्मा ही हम है | अतः आत्मा से
बुद्धि को सक्रिय कर विवेक से मन को नियंत्रित करते हुए कामनाओं को उठने से रोका
जा सकता है | इन्द्रियों का कार्य ही भोग उपलब्ध कराना है, उनको जोर-जबरदस्ती से
नियंत्रित करना अनुचित है | जो व्यक्ति इन्द्रियों को दबाकर उनसे विषयों का सेवन
नहीं करता, उससे वह स्वयं के द्वारा इन्द्रियों को नियंत्रित कर लेने का दावा तो
कर सकता है परन्तु उसके मन में इन विषयों का चिंतन सदैव चलता रहता है और उसमें
विभिन्न प्रकार की कामनाएं जन्म लेती रहती है | कामनाओं पर नियन्त्रण करने से ही इन्द्रियाँ
और मन नियंत्रित हो सकते हैं और यह नियंत्रण बुद्धि और ज्ञान से ही संभव है |
कामनाओं पर नियंत्रण ही से शांति प्राप्त हो सकती है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment