ज्ञानं लब्ध्वा परां
शांतिम् – 7
दिगम्बर जैन मुनि श्री प्रमाण सागर जी
महाराज कहते हैं कि ज्ञान को पाकर भी कई लोग ज्ञान को समझ नहीं सकते, उन्हें वह
तुच्छ लग सकता है | यह भी एक प्रकार का अहंकार ही है | सद्गुरु का अर्थ, एक ऐसा सच
जो हमें अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाये | इसलिए हमें सद्गुरु की आवश्यकता होती
है | वह हमारे अहंकार को पूर्ण रूप से समाप्त कर ज्ञान को अंतर्मन में उतार देता है
| पहले हमारी आत्मा और उसके बाद धीरे-धीरे हमारी ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों,
मन और बुद्धि ज्ञान को आत्मसात कर लेती है और हम ज्ञान में डूब जाते हैं | ऐसा हो जाने
पर ही ज्ञान का आनन्द आना प्रारम्भ होता है, प्रतिपल, प्रत्येक स्थान पर, प्रत्येक
परिस्थिति में | यह अवस्था सद्गुरु के आशीर्वाद के बिना नहीं आ सकती |
सिर्फ ज्ञान प्राप्त कर लेने
वाला ही ज्ञानी नहीं हो जाता, ज्ञान के साथ जीने वाला ही ज्ञानी होता है | ज्ञान
के साथ जीना हमें सद्गुरु सीखाता है और सद्गुरु बिना ईश्वर के आशीर्वाद के मिल
नहीं सकता | मुनि श्री प्रमाण सागर जी महाराज आगे कहते हैं कि आज की आवश्यकता है
कि हम सब ज्ञानी बनें, केवल ज्ञान को लेकर बैठें नहीं बल्कि ज्ञान को अपने में
बैठा लें | हमारे पास सतत जानकारियां आती रहती हैं परन्तु वह ज्ञान नहीं होता है
बल्कि सूचना मात्र होती हैं | ज्ञान सूचना से एक दम अलग है | ज्ञान वह है, जिसमें
बुद्धि का उपयोग करते हुए कुछ अनुभव प्राप्त करते हैं | ऐसा होने पर ज्ञान की केवल
बातें भर नहीं होती परन्तु जीवन में उसका उपयोग अधिक किया जाता है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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