ज्ञानं लब्ध्वा परां
शांतिम् – 4
बुद्धि भी सात्विक, राजसिक और
तामसिक प्रकृति की होती है | सात्विक बुद्धि उत्थान (Upward)
के मार्ग पर ले जाती
है, जबकि तामसिक बुद्धि पतन (Downfall) के मार्ग पर | प्रायः हम लोग बुद्धि और ज्ञान को एक दूसरे का पर्याय
समझ लेते हैं, वस्तुतः यह सत्य नहीं है | बुद्धि (Intelligence) हमारे मस्तिष्क (Brain) के द्वारा ज्ञान को ग्रहण (Receive) करने की क्षमता को कहते हैं | मनुष्य में ज्ञान
को आत्मसात करने की क्षमता सभी प्राणियों में सर्वाधिक होती है, अतः इसे सभी
प्राणियों में सर्वाधिक बुद्धिमान (Intellect) कहा जाता है | शेष सभी प्राणियों में ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता
मनुष्य से नीचे की सीढ़ियों (Steps) में धीरे-धीरे कम होती जाती है | जैसे मनुष्य के बाद चिम्पाजी आते
हैं, फिर बन्दर जैसे अन्य स्तनपायी | स्तनपायियों (Mammals) से कम बुद्धि पक्षियों (Aves) में, उससे कम सरीसृपों (Reptiles) में, फिर उभयचर (Amphibians) में और अंत में मछली (Fishes) जैसे जीवों में | उपरोक्त सभी प्राणी रीढ़धारी (Vertebrates) है | रीढधारियों से कम बुद्धि रीढविहीन (Non-vertebrates)
प्राणियों में और
अंत में सबसे अल्प बुद्धि एक कोशिकीय (Unicellular) जीव में होती है | यह स्पष्ट है कि एक कोशिकीय जीव से बुद्धि का विकास
होते होते मनुष्य के रूप में सर्वाधिक बुद्धि वाले जीव का पदार्पण इस धरती पर हुआ
है | इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विकास का आधार बुद्धि को ही माना जाना चाहिए, न
कि अन्य विकास को |
परमात्मा ने बुद्धि के विकास को ही
वास्तविक विकास कहा है | परन्तु हम इस संसार में भौतिक विकास को ही वास्तविक विकास
मान बैठे हैं | भौतिक विकास को विकास न कहकर आध्यात्मिक पतन कहना ज्यादा उचित होगा
क्योंकि भौतिक विकास की चकाचौंध में हम धीरे-धीरे अपना वास्तविक स्वरुप विस्मृत (Forget) करते जा रहे है | आज की आवश्यकता है कि हम अपनी
बुद्धि को भौतिक विकास के तले न दबने दें और उचित (Right) अनुचित (Wrong) को पहचान पाने की क्षमता को विकसित करें | मेरे
कहने का अभिप्राय (Meaning or aim) यह नहीं है कि भौतिक विकास होना अनुचित है | अनुचित तो भौतिक विकास की
चमक से प्रभावित होकर अपना वास्तविक स्वरुप भूल जाना है | आज भौतिक विकास नहीं
होता तो मेरा यह लेखन भी आपके पास तक इतनी आसानी से पहुँच नहीं पाता | भौतिक विकास
के तले दबिये नहीं, बल्कि इस विकास को अपने आध्यात्मिक उत्थान (Spiritual
development) का साधन बनाइये |
तभी हम अपनी बुद्धि को कुंद (Blunt) होने से रोक सकते है | कुंद बुद्धि ज्ञान को ग्रहण नहीं कर सकती और
बिना ज्ञान को आत्मसात किये मनुष्य पशु समान (Like an animal ) ही रह जाता है | ऐसे
में मनुष्य का शारीरिक रूप से मनुष्य होना भी आध्यात्मिक रूप से मनुष्य नहीं होना
है | ज्ञान को जानने से पहले बुद्धि को जान लेना इसलिए आवश्यक है क्योंकि बुद्धि
ही ज्ञान को ग्रहण करती है | ज्ञान बाह्य तत्व (External element) है जबकि बुद्धि शारीरिक तत्व | बुद्धि को जान
लेने के बाद हम मूल विषय (Main topic) ज्ञान की ओर चलते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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