भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियाँ थी । अष्टधा प्रकृति
ही वे आठ पटरानियाँ हैं । ईश्वर इन सभी प्रकृतियों के स्वामी हैँ । ये प्रकृतियाँ
परमात्मा की सेवा करती हैँ ।
" भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ।" (गीता 7/4 )!!
जीव प्रकृति के अधीन है । ईश्वर प्रकृति के अधीन नहीं है। जीव अष्टधा प्रकृति के वश में आ जाता है, जबकि ईश्वर उनको अपने वश में करते है । प्रकृति अर्थात् स्वभाव । स्वभाव के अधीन होने के बदले स्वभाव को प्रकृति को वशीभूत करने वाला जीव सुखी हो जाता है , मुक्त हो जाता है ।
||हरिः शरणम् ||
" भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ।" (गीता 7/4 )!!
जीव प्रकृति के अधीन है । ईश्वर प्रकृति के अधीन नहीं है। जीव अष्टधा प्रकृति के वश में आ जाता है, जबकि ईश्वर उनको अपने वश में करते है । प्रकृति अर्थात् स्वभाव । स्वभाव के अधीन होने के बदले स्वभाव को प्रकृति को वशीभूत करने वाला जीव सुखी हो जाता है , मुक्त हो जाता है ।
||हरिः शरणम् ||
।। हरि: शरणम् ।।
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