तृष्णा एक ऐसी वस्तु है, जो इच्छानुसार भोगो
के प्राप्त होने पर भी पूरी नहीं होती । उसी के कारण
मुझसे न जाने कितने
कर्म करवाये और उनके कारण न कितनी
योनियों में जाना पड़ा। कर्मों के कारण अनेकों
योनियों में भटकते भटकते दैव वश
मुझे यह मनुष्य योनि
मिली है, जो
स्वर्ग, मोक्ष, तिर्यग्योनि तथा इस मानव
देह की प्राप्ति का द्वार है। इसमें पुण्य करें तो
स्वर्ग, पाप करें तो
पशु पक्षी आदि की योनि, निवृत्त हो जाये तो मोक्ष और दोनों
प्रकार के कर्म किये जाये तो फिर मनुष्य योनि
ही प्राप्त हो सकती है |
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
कल से “न करोति
न लिप्यते” पर .....
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