गीता के इस 13/31 श्लोक
में परमात्मा ने भौतिक शरीर में स्थित पुरुष अर्थात अक्षर पुरुष यानि आत्मा को
स्वयं की तरह ही अनादि और गुणों से रहित बताया है | अनादि अर्थात जिसका कोई आदि न
हो, जो प्रारम्भ से ही सदैव हो, शाश्वत हो | गुणों से रहित होने का अभिप्राय है कि
जिसमें किसी प्रकार का गुण नहीं हो, जो सभी प्रकार के गुणों से परे हो, जो गुणातीत
हो | गुण नहीं होने का अर्थ यह नहीं है कि वह गुणहीन है बल्कि गुण होते हुए भी
गुणों से अप्रभावित है | जैसे सूर्य के प्रकाश में सभी सातों रंग होते है फिर भी
वह बिना किसी रंग के नज़र आता है | अनादि और गुणातीत होना, परमात्मा ही होना है,
अतः आत्मा भी परमात्मा ही है | परमात्मा और आत्मा दोनों वैसे एक ही हैं, फिर भी
कुछ समय के लिए अगर दोनों को अलग भी मान ले तो यह श्लोक स्पष्ट करता है कि आत्मा
भी परमात्मा का ही स्वरूप है और ये दोनों ही न तो कुछ करते हैं और न ही लिप्त होते
हैं | इस श्लोक के आधार पर हम गुण और कर्म के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए यह जानने
का प्रयास करेंगे कि इस शरीर से कर्म आखिर होते कैसे है और उनका कर्ता कौन है ?
‘कर्म कौन करता है ?’ अगर यह प्रश्न किसी भी
व्यक्ति से पूछा जाये तो वह बिना किसी संकोच के तत्काल ही उत्तर दे देगा कि प्रत्येक
कर्म व्यक्ति स्वयं ही करता है, इसमें भ्रम कहाँ से पैदा हो गया है ? आप भी इस बात
से सहमत हो सकते हैं | आप ही क्यों संसार का लगभग प्रत्येक व्यक्ति यही जानता है कि
कर्म व्यक्ति द्वारा ही किये जाते हैं | इस प्रश्न के बाद यह प्रश्न पैदा होता है
कि व्यक्ति कौन है ? यह व्यक्त शरीर अथवा शरीर के भीतर अवस्थित अव्यक्त आत्मा ? यहाँ
आकर सभी भ्रमित हो जाते हैं कि हम यह भौतिक शरीर हैं अथवा हम इसमें अवस्थित आत्मा
हैं ? अगर हम अपने आपको शरीर मानते हैं तो यह सत्य है कि प्रत्येक कर्म के कर्ता
हम स्वयं ही हैं और अगर हम अपने आपको आत्मा मानते हैं तो फिर हम किसी भी कर्म के कर्ता
कैसे हो सकते हैं ? गीता हमें हमारा वास्तविक स्वरूप दिखलाती है और स्पष्ट करती है
कि हम शरीर नहीं बल्कि आत्मा ही हैं | आत्मा परमात्मा का ही अंश है अतः आत्मा भी
कुछ नहीं करती है और न ही लिप्त होती है | इसी बात को स्पष्ट करने के लिए आइये, सब
कुछ करना छोड़ गीता की तरफ उन्मुख होते हैं और जानने का प्रयास करते हैं कि आखिर सब
कर्म करता कौन है ? इसी प्रश्न के उत्तर से हमें परमात्मा का यह कथन ‘न करोति न
लिप्यते’ भी स्पष्ट हो जायेगा |
|| हरिः शरणम् ||
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