Monday, October 3, 2016

मृत्यु-एक शाश्वत सत्य

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |(गीता-2/27)
                जो प्राणी जन्म ग्रहण करता है, उसे समय आने पर मरना भी पड़ता है और जो मरता है उसे जन्म लेना पड़ता है, पुनर्जन्म का यह सिद्धांत सनातन धर्म की अपनी विशेषता है ।
         जीवन की परिसमाप्ति मृत्यु से होती है, इस ध्रुव सत्य को सभी ने स्वीकार किया है और यह प्रत्यक्ष भी दिखाई पड़ता है | इसीलिए काल मृत्यु से आक्रान्त मनुष्य की रक्षा करने में औषधि, तपश्चर्या ,दान और माता-पिता एवं बन्धु-बान्धव कोई भी समर्थ नहीं है |
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नौषधं न तपो दानं न माता न च बान्धवाः । शक्नुवन्ति परित्रातुं नरं कालेन पीड़ितम् ।।
                                                  (पद्म पुराण-2/66/127)
         अतः जीवन के इस शाश्वत सत्य को स्वीकारें और सदैव याद रखें कि इस भौतिक शरीर की समाप्ति कभी भी क्षण भर में हो सकती है | मनुष्य देह का जीवन काल बहुत ही कम है, परमात्मा ही आपके सदैव साथ रहने वाले हैं, यथा शीघ्र उनको अपने जीवन में अवतरित होने दें |
|| हरिः शरणम् ||

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