Saturday, October 1, 2016

चाणक्य-नीति-8

चत्वारि ते तात गृहे वसन्तु,
श्रियाभिजुष्टस्य गृहस्थ धर्म |
वृद्धो ज्ञातिरव सन्न: कुलीनः,
सखा दरिद्रो भगिनी चान पत्या || नीति कल्पतरु-87/8 ||
हे प्रिय ! गृहस्थ धर्म में धन संपन्न होने पर तुम्हारे घर में गृह सदस्यों के अतिरिक्त चार व्यक्ति रह सकते हैं- एक तो बुढा सम्बन्धी, दूसरा संकट ग्रस्त उच्च कुल का व्यक्ति, तीसरा निर्धन मित्र और चौथी निःसंतान बहिन |
|| हरिः शरणम् ||

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