इस प्रकार भगवान ने उद्धवजी को तीनों मार्ग में
से किसी एक मार्ग पर चलने की योग्यता बता दी है | परन्तु हमारी विडंबना यह है कि
हम अपने मनुष्य जीवन के अंतिम चरण तक पहुँच जाने के बाद भी इनमें से किसी एक मार्ग
का चयन नहीं कर पाते हैं | इसका कारण यह है कि हम सब इस संसार में आकर सकाम कर्म
करने में इतने अधिक व्यस्त हो जाते हैं कि परमात्मा को पाने का विचार तक मन में नहीं
करते और अंत तक भक्ति-मार्ग पर चलने का भ्रम पाले परमात्मा के लिए केवल पूजा-पाठ
आदि का आडम्बर ही करते रहते हैं | इस प्रकार का आडम्बर जीवन में करना उपर्लिखित तीनों
मार्गों में से कोई सा भी एक मार्ग नहीं है | कर्म-योग सकाम कर्मों के स्वरूप में
परिवर्तन का नाम है, सकाम कर्मों के साथ केवल परमात्मा के नाम पर पूजा-पाठ करना
मात्र आडम्बर के सिवाय कुछ भी नहीं है | गीता में उपरोक्त तीन मार्ग बताये गए हैं
परन्तु फिर भी इस ग्रंथ को उनमें से एक, कर्म-योग का शास्त्र बताया जाता है
क्योंकि इस शास्त्र में समस्त प्रकार के कर्मों का विश्लेषण सही प्रकार से करते
हुए कर्म-योग को सबसे अधिक स्पष्ट किया गया है | कर्म-योग ही राजसिक गुणों से
युक्त व्यक्तियों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मार्ग है |
सकाम कर्मों को करते हुए ही स्वयं के
स्वभाव में परिवर्तन कर ज्ञान-योग अथवा भक्ति–योग की ओर बढ़ा जा सकता है | इस संसार
में जन्म लेने वाला प्रत्येक प्राणी कर्म करने को विवश है, अतः तीनों मार्ग में से
किसी एक मार्ग को पकड़ने की राह भी इस कर्म-मार्ग से ही होकर गुजरती है | कर्म केवल
प्रकृति में ही होते हैं और प्रकृति के द्वारा ही किये जाने संभव है | यह मनुष्य शरीर
भी इस प्रकृति की ही देन है | इस प्रकार परमात्मा की प्राप्ति के लिए इस मनुष्य
शरीर की उपयोगिता सिद्ध होती है | मनुष्य को चाहिए कि वह अपनी प्रकृति और स्वभाव
के अनुसार कर्मों के स्वरूप में परिवर्तन करते हुए कोई सा भी एक मार्ग चुनकर
परमात्मा की और अग्रसर हो जाये अन्यथा सकाम कर्म करते हुए तो वह आवागमन से कभी भी
मुक्त नहीं हो पायेगा |कल समापन कड़ी में इस श्रृंखला का सारांश
|| हरिः शरणम् ||
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