Sunday, October 2, 2016

सुभाषित-प्रदीप-1

त्यक्त स्व धर्माचरणा निर्घूणा: परपीड़काः |
चंडाश्च हिंसका नित्त्यम् म्लेच्छास्तेSविवेकनः || निन्दनीय(मलेच्छ) शुक्र नीति-1/44 ||

            जिन्होंने अपने धर्म पर चलना छोड़ दिया है, जो निर्दय दूसरों को सताने वाले क्रूर और हिंसा में ही लगे रहने वाले विवेकहीन लोग हैं, वे ही मलेच्छ कहलाते हैं |
|| हरिः शरणम् ||         

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