Tuesday, November 1, 2016

"जन्म दुःखं जरा दुःखं जाया दुःखं पुनः पुनः ।
अन्तकालं महादुःखं तस्मात् जागृहि जागृहि ।।"
जन्म दुःख है, वृद्धावस्था दुःखमय है, स्त्री, पुत्रादि कुटुम्ब जन दुःख रुप है और अन्त काल भी बडा दुखद है, इसलिए जागो - जागो । इस अंतकाल को रोज याद करो ।
          नित्य विचार करें कि यदि आज यमदूत मुझे पकडने आयें तो मैं कहाँ जाऊँगा - नरक में, स्वर्ग में, बैकुण्ठ में | मृत्यु का निवारण शक्य नहीं है, तो फिर पाप क्यों? कई लोग बहुत समझदार बनते है । जब बाजार में कुछ लेने जाते है तो बडी देर तक सोच विचार करते है कि किस वस्तु को लिया जाये । किन्तु जिसका विचार करने की आवश्यकता है उस पर विचार ही नहीं करते । मृत्यु को रोज याद करें, मृत्यु का भय रहेगा तो पाप दूर होगा और जिस दिन पाप दूर हो जायेगा, उसी दिन मनुष्य संत बन जायेगा ।

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