Sunday, November 6, 2016

ज्ञान

ज्ञान
पात्रता के अभाव में ज्ञान टिकता नहीं है । सुपात्र के अभाव में ज्ञान शोभा नहीं पाता है । धन और ज्ञान सुपात्र के बिना शोभा नहीं पाते है ।
जब तक ज्ञान क्रियात्मक नहीं होता तब तक वह अज्ञान जैसा ही होता है । बहुत जानने की अपेक्षा तो जितना जान लिया है, उसे जीवन में उतारने का प्रयत्न करना चाहिए । ज्ञान जब तक क्रियात्मक न बन जाये तब तक उसकी कोई कीमत नहीं होती । जब ज्ञान क्रियात्मक होता है तभी वह शान्ति देता है । ज्ञान को शब्द रुप ही न रहने दिया जाये बल्कि उसे क्रियात्मक बनाया जाये । ज्ञान का अन्त न कभी हुआ और न कभी होने वाला है परन्तु जितना ज्ञान प्राप्त हो गया है उसे ही क्रियात्मक बनाने से शान्ति मिलती है ।
कपिल अर्थात् जो जितेन्द्रिय है, वही ज्ञान को पचा सकता है । विलासी जन ज्ञान का अनुभव नहीं कर सकते ।
कर्दम जीवात्मा है और देवहूति बुद्धि है । देवहूति देव को बुलाने वाली निष्काम बुद्धि है ।
ज्ञान प्राप्त करने हेतु सरस्वती के पास रहना होगा। कर्दम होना होगा । यदि हम कर्दम होंगे तभी बुद्धि देवहूति बनेगी अर्थात् जितेन्द्रिय होने पर ही बुद्धि निष्काम होगी और कपिल भगवान आयेंगे अर्थात् ज्ञान सिद्ध होगा । ज्ञान सिद्ध होने पर पुरुषार्थ सिद्ध होगा ।
वैराग्य और संयम के अभाव में ज्ञान सिद्ध नहीं होता, प्राप्त ज्ञान को जीवन में उतारकर भक्तिमय जीवन बिताने वाले जन बहुत ही विरले है ।
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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