अहम् ब्रह्मास्मि
एक भक्त था जो अपने गुरु की प्रतिमा के समक्ष बैठा उस पर पुष्प अर्पित कर रहा था | अचानक उसका ध्यान अंतर्मुखी हो गया और समाधिस्थ होकर उसने देखा कि समस्त ब्रह्मांड उसी के भीतर है | उसकी देह स्थिर थी पर उसकी चेतना अनंत के साथ एकाकार हो गई |
बाद में उसे लगा कि मैं पुष्प सही स्थान पर अर्पित नहीं कर रहा था क्योंकि समस्त ब्रह्मांड तो मेरी चेतना है, मैं यह देह नहीं अपितु पूर्ण समष्टि हूँ | मैं, मेरे गुरुदेव और परमात्मा सभी एक हैं | उसने बचे हुए पुष्प अपनी नश्वर देह के सिर पर ही चढ़ा दिए, और पुनः समाधिस्थ हो गया |
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
आज से कुछ समय के लिए अवकाश पर जा रहा हूँ | दिसम्बर माह के तीसरे सप्ताह से फिर से अध्यात्म चर्चा में सब साथ होंगे |
|| हरि शरणम् ||
No comments:
Post a Comment