Saturday, December 10, 2016

गृहस्थ / संन्यस्थ

                  एक सन्यासी और एक गृहस्थ होने में अंतर क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर आज मिला है | ऐसी एक धारणा बन गई है जिसके अनुसार गृहस्थी को एक बंधन माना जाता है और सन्यासी को मुक्त | वास्तव में यह धारणा ही पूर्ण रूप से गलत है | गृहस्थ भी मुक्त अवस्था में रह सकता है और सन्यासी भी बंधन में बंधा रह सकता है | केवल सन्यास का आँचल पकडे रहना भी एक बंधन है और इसी तरह केवल गृहस्थी में रमे रहना भी बंधन है | गृहस्थ भी मुक्त अवस्था में रह सकता है | लगभग छः माह पहले जब मेरे छोटे पुत्र के विवाह की तिथि 8 दिसम्बर को निश्चित की गई थी, तब मैं हरिः शरणम् गया था | मेरी धर्मपत्नी के आग्रह पर आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा ने मुझे कहा था कि अपने कर्तव्य का पालन करते हुए पहले पुत्र का विवाह करो और फिर आध्यात्मिकता के मार्ग पर आगे बढ़ना | उस समय मुझे यह लगा कि मैं पुनः उस संसार  में लौट रहा हूँ जहां से मैं शनैः शनैः निवृत हो रहा था | बीच में एक दो बार मैंने अपनी यह व्यथा उनके सामने दूरभाष पर प्रकट भी की थी परन्तु उन्होंने अपने कथन को परिवर्तित नहीं किया | आज जब मैं पुत्र का विवाह दो दिन पहले संपन्न कर चूका हूँ तब जाकर उनका कहना मुझे शत प्रतिशत सत्य नज़र आ रहा है | यह सत्य है कि सन्यास भी एक प्रकार का बंधन है जब तक कि आप अपने कर्तव्य से मुक्त न हो चुके हों |
                    गृहस्थ को ऐसा होना चाहिए जो सदैव सन्यस्थ होकर रहे और सन्यासी को भी ऐसा होना चाहिए कि जब कर्त्तव्य का पालन करना हो कुछ समय के लिए गृहस्थी में लौट जाये | इसी को गीता में समत्व योग कहा गया है | गीता में समता को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है |
        योगस्थः कुरु कर्माणि संगत्यक्त्वा धनंजय |
        सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते || गीता 2/48 ||
अर्थात हे धनञ्जय ! तू आसक्ति को त्याग कर त्तथा सिद्धि असिद्धि में समान बुद्धि वाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व ही योग कहलाता है |
|| हरिः शरणम् ||
आप सभी मित्रों, बंधु-बांधवों और मेरे बुजुर्गों का आभार जिन्होंने अपना अमूल्य समय निकाल कर मेरे पुत्र के विवाह समारोह में पधारकर आशीर्वाद प्रदान किया | मैं उनका भी आभारी हूँ जिन्होंने मेरे जन्म दिन और पुत्र-विवाह पर विभिन्न माध्यमों से शुभकामनाएं प्रेषित की हैं | बहुत बहुत धन्यवाद | एक सप्ताह में सभी कार्यों से निवृत होकर आपके समक्ष पुनः लौटूंगा |

आपका- डॉ.प्रकाश काछवाल  

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