Tuesday, December 27, 2016

ग्रहण-3

ग्रहण-3
ग्रहण का महत्त्व -
       सूर्य को आभायुक्त और संसार को प्रकाशित करने वाला कहा गया है | इसी कारण से हम इसे सूर्य भगवान कह कर पुकारते हैं | सूर्य साक्षात् परमात्मा का ही स्वरूप है | सूर्य  को बुद्धि का स्वामी भी कहा जाता  है | बुद्धि ही हमारे शरीर को एक प्रकार की आभा प्रदान करती है |
       पृथ्वी से हमारा शरीर बना है और उसी से हम पोषित होते हैं | गीता में भी भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को कई स्थानों पर पार्थ कहकर पुकारते हैं, जिसका अर्थ है पृथा अथवा पृथ्वी पुत्र | पृथा कुंती का भी एक नाम है और पृथा पृथ्वी को भी कहते हैं | हम पृथ्वी-पुत्र हैं अतः यह हमारा शरीर ही पृथ्वी से निर्मित होने के कारण पृथ्वी ही कहा जा सकता है | कई महात्माओं ने इस शरीर को मिट्टी की उपमा भी इसीलिए दी है | मिट्टी से ही पैदा होना और मिट्टी में ही मिल जाना |
       चंद्रमा को मन का स्वामी कहा गया है अतः यह चंद्रमा हमारे मन का ही प्रतीक है | बुद्धि की तरह ही मन हमारे शरीर में अवस्थित है | चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी दोनों की परिक्रमा करता है परन्तु वह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अति निकट है | इसी प्रकार मन भी बुद्धि और शरीर दोनों के ही अनुसार संचालित होता है परन्तु भौतिक शरीर के वह अधिक निकट है |
         इस प्रकार यह सूर्य, हमारी बुद्धि है, मन चन्द्रमा है और इन्द्रियों सहित यह हमारा भौतिक शरीर पृथ्वी हुए | सूर्य-ग्रहण के दिन सूर्य और पृथ्वी के मध्य चंद्रमा आ जाता है और सूर्य दिखाई नहीं देता अथवा खंडित दिखाई देता है तथा उसका प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता है | इसी प्रकार जब पृथ्वी (शरीर) और सूर्य (बुद्धि) के मध्य यह चंद्रमा (मन) आ जाता है तब हमारी बुद्धि मन के प्रभाव के कारण कार्य नहीं कर पाती है अथवा सूर्य के खंडित रूप की तरह मन पर प्रभावी नहीं रह पाती है | चन्द्र-ग्रहण की स्थिति में इस सूर्य (बुद्धि) और चंद्रमा (हमारा मन) के मध्य पृथ्वी (इन्द्रियों सहित यह भौतिक देह) आ जाती है तब चन्द्रमा (मन) का आलोक क्षीण हो जाता है अर्थात जब हमारी बुद्धि का मन पर  अधिक प्रभाव हो जाता है तब यह कहा जा सकता है कि हमने अपनी इन्द्रियों और मन को नियंत्रित कर लिया है | हमें अब अपनी बुद्धि के ही प्रकाश को देखना है, अपने विवेक का ही उपयोग करना है | मन कभी भी स्वयं से प्रकाशित नहीं है, उसका स्वयं का प्रकाशित होना मान लेना असत्य है | मन या तो हमारी बुद्धि के अनुसार चलता है अथवा हमारी इन्द्रियों और शरीर के अनुसार | अगर हमारे मन पर इन्द्रियों सहित शरीर का प्रभाव अधिक हुआ तो मन इस भौतिक शरीर के अनुसार चलेगा और अगर बुद्धि का उस पर अधिक प्रभाव हुआ तो फिर उसे बुद्धि और विवेक के अनुसार चलना होगा |

           कहने का अर्थ यह है कि सूर्य-ग्रहण और चन्द्र ग्रहण भले ही भौगोलिक और अन्तरिक्ष में घटित होने वाली घटनाएँ मात्र हो, हमारे पूर्वजों ने इनके माध्यम से हमें कुछ सन्देश देने का प्रयास किया है | इसीलिए पूर्वजों ने सूर्य को बुद्धि का स्वामी, चन्द्रमा को मन का स्वामी और पृथ्वी को हमारी माँ कहा है | हमारे खगोल शास्त्रियों ने खगोल विज्ञान में इन खगोलीय घटनाओं का प्रभाव हमारे शरीर, बुद्धि और मन पर किस प्रकार पड़ता है, का सटीक विश्लेषण करते हुए विस्तृत रूप से वर्णन तक किया है |
क्रमशः 
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल 
|| हरिः शरणम् ||

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