प्रथम प्रश्न -.
मैं असमंजस में हूँ कि अगर कोई व्यक्ति नई खोज के लिए कामना नहीं रखता है, कुछ नया करने का विचार उसके मन में पैदा नहीं होता है तो ऐसे में सम्पूर्ण मानव जाति का विकास कैसे होगा ? परमात्मा ने हमें बुद्धि दी, हमें इसका उपयोग क्यों नहीं करना चाहिये अन्यथा वह हमें बुद्धि ही क्यों देता ?
इस प्रश्न के तीन भाग हैं –विकास, कामना और बुद्धि | मानव के विकास के बारे में मैं कहना चाहूँगा कि कामना और मानव जाति के विकास में कोई गहरा सम्बन्ध नहीं है | हाँ, एक सीमा तक कामना रखकर संसार के भले के लिए कुछ किया जा सकता है परन्तु ऐसे को हम विकास नहीं कह सकते | आइन्स्टीन ने परमार्थ के लिए आणविक ऊर्जा के लिए सापेक्षता का सिद्धांत प्रतिपादित किया था | क्या उससे मानव का विकास हुआ है ? सुख के साधन जुटा लेना अथवा अत्यधिक मारक क्षमता के आयुध बना लेना कोई विकास नहीं है | आणविक ऊर्जा तो प्रत्येक पदार्थ में इस ब्रह्माण्ड के बनने के प्रारम्भ काल से ही है | आइन्स्टीन ने इस ऊर्जा को व्यक्त करने का उपाय खोज निकाला | सेव पेड़ से जमीन पर प्रारम्भ से ही गिरते आ रहे हैं परन्तु न्यूटन ने विचार करके गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को संसार के सम्मुख स्पष्ट कर दिया | इस सिद्धांत के आधार पर हमने इस संसार से बाहर अन्य ग्रहों की यात्रा प्रारम्भ कर दी परन्तु इससे मानव का कितना विकास हुआ ? वास्तव में विश्लेषण करें तो पाएंगे कि अभी तक विकास के नाम पर विनाश की ओर ही अग्रसर हुए हैं हम | इसलिए मैं यह कह रहा हूँ कि कामना और मानव के विकास का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है क्योंकि केवल भौतिक विकास को ही विकास कहना अनुचित है |
मानव का विकास तभी होगा जब प्रत्येक मनुष्य अपने आपको आध्यात्मिक रूप से विकसित करेगा | जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति आत्मिक रूप से विकसित हो जायेगा उस दिन ही सही मायने में इस संसार का विकास होगा | मनुष्य का विकास होगा आध्यात्मिक उत्थान से, भौतिक उत्थान से नहीं | बुद्धि का उपयोग कर मनुष्य इस विकास की ऊँचाइयों को छू सकता है | अब आते हैं, कामना के विषय पर | कामना को जाने बिना हम कर्म को नहीं जान पाएंगे |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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