आलोक-अनुभूति-5
मनुष्य की बुद्धि मन और आत्मा के मध्य स्थित है | बुद्धि अगर मन के अनुसार कार्य करती है, तब वह भौतिकता का विकास करती है और मनुष्य को विभिन्न प्रकार के बंधनों में बाँध देती है | इन बंधनों के कारण वह एक क्या, सहस्रों मानव जन्म लेने तक भी मुक्त नहीं हो सकता | यही बुद्धि जब मन का परित्याग कर अपनी आत्मा के अनुसार कार्य करने लग जाती है, तब ही मनुष्य का वास्तविकता में विकास हो पाता है | आत्म-बोध (Self Realization) होते ही समस्त कामनाओं का नाश हो जाता है और एक ही मनुष्य जीवन में व्यक्ति तत्काल मुक्त हो सकता है-जीवन-मुक्त अर्थात विदेह, राजा जनक की तरह |
इस प्रकार प्रथम प्रश्न के विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि मनुष्य का वास्तविक विकास आध्यात्मिक विकास है, न कि भौतिक विकास | बुद्धि व्यक्ति के मन के अनुरूप चलती है तो भौतिक विकास होता है और आत्मा के अनुसार चलती है तो आध्यात्मिक विकास | कामना का भौतिक विकास से संबंध अवश्य है परन्तु व्यक्ति को अपने आध्यात्मिक विकास के लिए प्रत्येक कामना का त्याग करते हुए निर्विचार होना आवश्यक है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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