आलोक-अनुभूति-3
कामना और मनुष्य का साथ आज से नहीं है बल्कि जब से मनुष्य का इस धरा पर आगमन हुआ है, तब से ही है | इनका आपस का साथ दिन प्रतिदिन प्रगाढ़ ही होता जा रहा है | कामना करना कहीं से भी अनुचित नहीं है बल्कि कामना किस प्रकार की है, यह अधिक महत्वपूर्ण है | कामना दो प्रकार की होती है-शुभ और अशुभ | शुभ कामना में व्यक्ति का निजी स्वार्थ नहीं होता, किसी को दुःख देने की भावना नहीं होती बल्कि मन में परमार्थ की भावना होती है जबकि अशुभ कामना व्यक्ति के केवल निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए होती है |
प्रत्येक कामना से कर्म जुडा रहता है | कामना है तो कर्म भी होगा और कर्म होंगे तो उनका परिणाम भी अवश्य मिलेगा और अगर कर्म का परिणाम प्राप्त करना ही है तो इस संसार में पुनः आना भी होगा | अशुभ कामना (Greed) सकाम कर्म कराती है और शुभ कामना (Good wishes) निष्काम कर्म | फल तो दोनों प्रकार के ही कर्मों का मिलना अवश्यम्भावी है | निष्काम–कर्म में परमार्थ की कामना होती है और सकाम कर्म में स्वार्थ की | बिना कामना के किसी भी प्रकार के कर्म का होना असंभव है | निष्काम–कर्म जब अकर्म बन जाते हैं तभी उनका फल प्राप्त नहीं होता | अकर्म वे कर्म होते हैं, जो बिना किसी कामना के किये जाते हैं और जिनको व्यक्ति अपने द्वारा किया हुआ न मानकर प्रकृति के गुणों द्वारा हुआ मानता है | मनुष्य कामना को विकास का आधार मानता है | हाँ, यह एक प्रकार से भौतिक विकास का आधार अवश्य है परन्तु भौतिक विकास को मनुष्य का वास्तविक विकास नहीं माना जा सकता | अशुभ कामना व्यक्ति को सुख-दुःख के संसाधन उपलब्ध करवा सकती है जबकि शुभ कामना आनन्द को | मनुष्य को अपने आध्यात्मिक विकास, जो कि वास्तविकता में उसका विकास है, के लिए सभी प्रकार की कामनाओं को त्यागना होगा क्योंकि कामनाएं बंधन पैदा करती है, कर्म-बंधन को | विकास बंधन में बंधे रहकर नहीं हो सकता, मनुष्य का विकास तो उसके मुक्त होने में ही है |
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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