आज लगभग 40 दिनों बाद social media पर नियमित रूप से लौट रहा हूँ । इस काल का अनुभव बड़ा ही सबक देने वाला रहा । हम सांसारिक कर्मों की आड़ में किस प्रकार बंधनों में जकड़ जाते हैं, यह प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया जा सकता है । मकड़ी के जाल की तरह ही है इस संसार का ताना-बाना , जहाँ शिकारी भोजन की तलाश करते करते ही किसी और शिकारी का शिकार बन जाता है । एक कर्तव्य आपके समक्ष आता है और उस कर्तव्य को पूर्णता प्रदान करने से पहले ही दूसरा कर्तव्य आपके समक्ष उपस्थित हो जाता है या यूँ कहा जा सकता है कि प्रस्तुत कर दिया जाता है । आपका विवेक ही ऐसे सांसारिक कर्तव्यों के मक्कड़जाल से बचा सकता है । यहाँ आकर यह आसानी से समझा जा सकता है कि क्यों कर इस संसार को सागर कहा गया है जहाँ से पार होना कितना मुश्किल है । प्रायः हम इस संसार सागर में डूब ही जाते हैं ।
हरि : शरणम् के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा कहते हैं कि सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करना भी आपका एक धर्म है परंतु उन कर्तव्यों को अपने अनुसार पूरा करने का संकल्प ही आपको संसार में उलझा देता है । कर्तव्य करने के लिए कर्म करें परंतु वह आपकी इच्छानुसार हो पाता है अथवा नहीं,इस दुविधा में न पड़ें । अगर कर्तव्य-कर्म आपके मन अनुसार हो गए तो फिर आप उन कर्मों में आसक्त हो जायेंगे और अगर नहीं हो पाए तो फिर यह आपके दुःख का एक कारण होगा । इस दुःख से बाहर निकलने के लिए फिर से आप कोई नया कर्म करेंगे । इस प्रकार आप एक से दूसरे और फिर तीसरे कर्तव्यों के लिए कर्म करते हुए इस संसार में उलझ कर रह जायेंगे । अपने आप को इस स्थिति से बचाने के लिए आप कर्तव्य को निभाने के लिए कर्म अवश्य करें और उनका जो भी परिणाम हो,स्वीकार करें और पुनः संसार से बाहर निकल आएं । सभी प्रकार के संकल्पों और विकल्पों का त्याग करते हुए साक्षी-भाव से सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करें ।
॥ हरि : शरणम् ॥
हरि : शरणम् के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा कहते हैं कि सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करना भी आपका एक धर्म है परंतु उन कर्तव्यों को अपने अनुसार पूरा करने का संकल्प ही आपको संसार में उलझा देता है । कर्तव्य करने के लिए कर्म करें परंतु वह आपकी इच्छानुसार हो पाता है अथवा नहीं,इस दुविधा में न पड़ें । अगर कर्तव्य-कर्म आपके मन अनुसार हो गए तो फिर आप उन कर्मों में आसक्त हो जायेंगे और अगर नहीं हो पाए तो फिर यह आपके दुःख का एक कारण होगा । इस दुःख से बाहर निकलने के लिए फिर से आप कोई नया कर्म करेंगे । इस प्रकार आप एक से दूसरे और फिर तीसरे कर्तव्यों के लिए कर्म करते हुए इस संसार में उलझ कर रह जायेंगे । अपने आप को इस स्थिति से बचाने के लिए आप कर्तव्य को निभाने के लिए कर्म अवश्य करें और उनका जो भी परिणाम हो,स्वीकार करें और पुनः संसार से बाहर निकल आएं । सभी प्रकार के संकल्पों और विकल्पों का त्याग करते हुए साक्षी-भाव से सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करें ।
॥ हरि : शरणम् ॥
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