सत्य ,वास्तव में है क्या ? जो आप आज अपनी आँखों से देख रहे हैं,वह तो बिल्कुल भी नहीं है | अगर मैं आपको कहूँ कि आपने उस समय क्या देखा,तो आप केवल उस बात का ही जिक्र करेंगे जो घटना आपकी आँखों ने घटित होते हुए देखी | आपकी आँखे केवल वही देखती है जो आप स्वयं देखना चाहते है |आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि आँखे खुली होने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप देख ही रहे हैं | मान लिया आपकी आँखे जीवित कैमरे की तरह व्यवहार करती है ,परन्तु एक साधारण कैमरे और आँख में यह सबसे बड़ा अंतर है कि कैमरा उस समय उसके सामने घटित हो रहे घटनाक्रम को रिकॉर्ड कर सकता है,देख सकता है,उसकी फोटो ले सकता है परन्तु आपकी खुली आँखे बिना आपकी इच्छा के देख नहीं सकती,किसी घटनाक्रम को रिकॉर्ड नहीं कर सकती और न ही भविष्य में उसे याद कर सकती है | आप घटना स्थल पर होते हुए भी कुछ भी न देख पाने को स्वतन्त्र हैं |आपका मन,आपकी बुद्धि अगर उस दृश्य में रुचि नहीं दर्शा रही है तो आप वह दृश्य किसी भी हालत में नहीं देख सकते | अगर वास्तव में ऐसा होता है तो फिर इसका उल्टा होना ,इसके विपरीत होना भी संभव है |मेरे कहने का मतलब यह है कि आपकी खुली आँखे वह सब भी देख सकती है ,जो उस वक्त घटित ही नहीं हो रहा हो |यह सब होना केवल मनुष्य के द्वारा ही हो सकता है ,पशुओं के पास ऐसा कर पाने की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है |
ऐसा होना केवल मन के कारण ही संभव है | अगर मनुष्य की मानसिक स्थिति उस परिदृश्य के अनुकूल नहीं है तो फिर उसकी आँखे,उसकी खुली हुई आँखे सब कुछ देखने के बावजूद भी कुछ नहीं देख पायेगी |ठीक इसके विपरीत अगर कोई व्यक्ति मानसिक उधेड़बुन में उलझा हुआ उस परिदृश्य को देख रहा हो तो वह उस घटनाक्रम को ,उस परिदृश्य को अलग तरीके से भी देख सकता है | सब इस मन का खेल है और मन असत प्रकृति का है | असत प्रकृति के द्वारा कुछ भी किया गया कार्य सत्य कैसे माना जा सकता है?इसी कारण से कहा जा सकता है कि आँखों देखी भी असत्य हो सकती है |
मनुष्य की पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है और इन पांचो के साथ यही होता है |आप त्वचा से स्पर्श अनुभव करते हैं |आपका यह अनुभव भी आपकी मनोदशा पर निर्भर करता है |जब आप किसी परेशानी से जूझ रहे होते है तब आपको रात को नींद नहीं आ पाती |आपका कोमल बिस्तर भी रात भर आपको काटता रहता है | जब आपकी मानसिक दशा अच्छी होती है,आप खुश होते हो तब आपको बिस्तर किसी भी प्रकार का उपलब्ध हो, नींद तत्काल आ जाती है | कठोर बिस्तर भी आपको कोमल नज़र आता है | बिस्तर का नींद से कोई सम्बन्ध नहीं है ,नींद का सम्बन्ध है आपकी मनोदशा से | सत्य का कोई सम्बन्ध नहीं है आपकी त्वचा के संवेदनशील या संवेदनहीन होने से |सत्य तो सदैव सत्य है,आपका अनुभव ,आपकी मनोदशा के अनुरूप होता है |यहाँ प्रश्न सत्य या असत्य का नहीं है ,आपकी मोदशा का है |ज्ञानेन्द्रिया जो व्यक्त करती है,वह सब आपकी मनोदशा को ही व्यक्त करती है | वह व्यक्त करना सत्य ही है ,असत्य तो संसार के मापदंड उसे बना देते हैं |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
ऐसा होना केवल मन के कारण ही संभव है | अगर मनुष्य की मानसिक स्थिति उस परिदृश्य के अनुकूल नहीं है तो फिर उसकी आँखे,उसकी खुली हुई आँखे सब कुछ देखने के बावजूद भी कुछ नहीं देख पायेगी |ठीक इसके विपरीत अगर कोई व्यक्ति मानसिक उधेड़बुन में उलझा हुआ उस परिदृश्य को देख रहा हो तो वह उस घटनाक्रम को ,उस परिदृश्य को अलग तरीके से भी देख सकता है | सब इस मन का खेल है और मन असत प्रकृति का है | असत प्रकृति के द्वारा कुछ भी किया गया कार्य सत्य कैसे माना जा सकता है?इसी कारण से कहा जा सकता है कि आँखों देखी भी असत्य हो सकती है |
मनुष्य की पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होती है और इन पांचो के साथ यही होता है |आप त्वचा से स्पर्श अनुभव करते हैं |आपका यह अनुभव भी आपकी मनोदशा पर निर्भर करता है |जब आप किसी परेशानी से जूझ रहे होते है तब आपको रात को नींद नहीं आ पाती |आपका कोमल बिस्तर भी रात भर आपको काटता रहता है | जब आपकी मानसिक दशा अच्छी होती है,आप खुश होते हो तब आपको बिस्तर किसी भी प्रकार का उपलब्ध हो, नींद तत्काल आ जाती है | कठोर बिस्तर भी आपको कोमल नज़र आता है | बिस्तर का नींद से कोई सम्बन्ध नहीं है ,नींद का सम्बन्ध है आपकी मनोदशा से | सत्य का कोई सम्बन्ध नहीं है आपकी त्वचा के संवेदनशील या संवेदनहीन होने से |सत्य तो सदैव सत्य है,आपका अनुभव ,आपकी मनोदशा के अनुरूप होता है |यहाँ प्रश्न सत्य या असत्य का नहीं है ,आपकी मोदशा का है |ज्ञानेन्द्रिया जो व्यक्त करती है,वह सब आपकी मनोदशा को ही व्यक्त करती है | वह व्यक्त करना सत्य ही है ,असत्य तो संसार के मापदंड उसे बना देते हैं |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment