Thursday, May 29, 2014

सत्य - असत्य |-३१ समापन किश्त |

                                         सुख को प्राप्त करने और दुःख से दूर रहने के लिए लोग परमात्मा से प्रार्थनाएं करते हैं । साथ ही साथ वे लोग परमात्मा के द्वारा बनाये नियमों पर न चलकर उनका उल्लंघन करते है । प्रार्थना के साथ यह उम्मीद भी रखते हैं कि परमात्मा उनकी मांगें पूरी करेगा । परमात्मा ऐसे व्यक्तियों की प्रार्थना पर कभी भी ध्यान नहीं देगा,यह मैं पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ । जब परमात्मा इस पृथ्वी पर मनुज रूप में अवतार लेते है,तब वे भी अपने बनाये गए नियमों के पालन हेतु बाध्य होते हैं । ऐसे में कोई भी साधारण मनुष्य यह कैसे सोच सकता है कि वह इन नियमों के विरुद्ध जा भी सकता है । ऐसे व्यक्ति केवल दुखों को ही प्राप्त होते है । वे परमात्मा की लाख प्रार्थना कर ले , सपने में भी सुख प्राप्त नहीं कर सकते ।
                                         संसार के समस्त सुखों से भी ऊपर एक और सुख है । जिसे हम आनंद कहते हैं । सुख और दुःख तो परमात्मा के बनाये नियमों पर चलकर या उनका उल्लंघन कर प्राप्त कर सकते हैं परन्तु आनंद प्राप्त करना है तो फिर व्यक्ति को सुख-दुःख के अनुभव से भी ऊपर उठना होगा । जीवन का सत्य तो आनंद ही है,सुख नहीं । आनंद तो केवल परमात्मा से ही प्राप्त किया जा सकता है । परमात्मा का एक नाम सच्चिदानंदघन भी है । सत+चित्त+आनंद+घन=सच्चिदानंदघन। वह सत भी है,चित्त भी है और आनंद का भंडार (घन,घनीभूत) है । परमात्मा को प्राप्त किये बिना न तो सत्य प्राप्त किया जा सकता और न ही आनंद । अतः आवश्यकता है कि हम सर्वस्व की प्राप्ति के लिए परमात्मा को प्राप्त करने का प्रयास करें।
                              अब प्रश्न यह उठता है कि परमात्मा को पाने के लिए हमें क्या करना होगा ?  परमात्मा ही सत्य है ,परमात्मा ही आनंद है अतः सत्य और आनंद को प्राप्त करने का रास्ता भी वही है जो परमात्मा को प्राप्त करने का है । इनको प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम हमें परमात्मा के द्वारा स्थापित प्रकृति के नियमों को स्वीकार करते हुए उनपर चलने का संकल्प करना होगा । यह आध्यात्मिकता की प्रारम्भिक अवस्था है । इसके बाद कारण दृष्टि का विकास करना होगा जो आपको साक्षात् परमात्मा के दर्शन कराएगा । जब इस अवस्था को प्राप्त कर लेंगे वह आध्यात्मिकता की उच्च अवस्था होती है । यह सब लिखने और पढ़ने में आसान अवश्य लगता है परन्तु आसानी से इस अवस्था को प्राप्त नहीं किया जा सकता । दोनों ही अवस्थाओं में व्यक्ति बार बार सांसारिकता की तरफ वापिस लौट जाने का प्रयास करता है । अगर व्यक्ति मन के इस भुलावे में न आये तो फिर दूसरी अवस्था तक व्यक्ति कई प्रयास से पहुँच सकता है । परन्तु अभी भी व्यक्ति परमात्मा से दूर है,सत्य से दूर है । जब व्यक्ति अपने आप के होने को ही भूला बैठता है तब वह स्वयं ही परमात्मा हो जाता है ,तब उसमे और परमात्मा में कोई विभिन्नता नहीं रहती । इस अवस्था को प्राप्त कर ही हनुमान कह सके कि" हे श्री राम,जो आप हैं वही मैं हूँ । " यही सत्य है,यही आनंद है और यही परमात्मा भी ।
                          अभी भी सत्य और असत्य के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है,परन्तु इस अल्पबुद्धि व्यक्ति में संकलन करने की क्षमता इतनी ही है । सत्य भी यही है । परमात्मा अपरिमेय है। इसे मनुष्य अपने ज्ञान और बुद्धि से नहीं माप सकता ।
                                      || हरिः शरणम् ||    

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