हनुमानजी और श्रीराम के प्रसंग में जिन तीन प्रकार की दृष्टियों का उल्लेख हुआ है वही सत्य और असत्य का आधार है । अंतर केवल दृष्टि का है अन्यथा तो यहाँ वहॉँ सब ओर सत्य ही सत्य है । आज से हम प्रत्येक दृष्टि की संक्षेप में चर्चा करेँगे जिससे हम सत्य के कुछ ओर पास पहुँच सकेंगे । संसार में दृष्टि प्रत्येक प्राणी की अपनी अपनी होती है । अंतर केवल गुणात्मक होता है,मात्रात्मक नहीं । मात्रात्मक रूप से इसलिए नहीं क्योंकि सबके पास दृष्टि के लिये आवश्यक दोनों साधन-मस्तिष्क और आँख, समान रूप से उपस्थित होते हैं । परन्तु मनुष्य के अतिरिक्त अन्य प्राणियों के पास मन का अभाव होता है और मस्तिष्क भी कम विकसित होता है ,जिससे बुद्धि उतनी तीव्र नहीँ होती ।इस स्थिति में जो दृष्टि बनती है उसे स्थूल दृष्टि कहा जाता है । इस दृष्टि में केवल जो दृश्य भौतिक रूप से आँख द्वारा देखना सम्भव होता है ,वही दृश्य उस प्राणी द्वारा देखा जता है । इसको हनुमान ने स्पष्ट किया है । भगवान श्रीराम को उन्होंने कहा कि अगर स्थूल दृष्टि से देखा जाये तो मैं एक वानर हूँ और आप एक मनुष्य ।
स्थूल दृष्टि से जो कुछ भी दिखाई देता है वह सत्य ही होता है । परन्तु यह सत्य कम प्रकाश की तरह का होता है । यह असत्य कदापि नहीं है ,है यह भी सत्य । परन्तु इसे आप सत्य की एक झलक मात्र कह सकते हैं । जैसे कम प्रकाश में हम स्पष्ट नहीं देख पाते उसी प्रकार सत्य को हम स्थूल दृष्टि से सही सही नहीं समझ पाते हैं ।मनुष्य और अन्य प्राणियों में मूलभूत अंतर इस दृष्टि का ही है । अन्य जीवों में प्रायः स्थूल दृष्टि ही होती है ,कुछ प्राणियों में सूक्ष्म दृष्टि भी होती है परन्तु मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सब प्राणियों में कारण दृष्टि का पूर्णतया अभाव होता है । वे यह जानते हैं कि स्थूल रूप से वे एक विशेष प्रकार के जानवर है और मनुष्य उनसे अलग किस्म का प्राणी है ।
स्थूल दृष्टि केवल स्थूल शरीर को ही देख पाती है । स्थूल दृष्टि किसी के भी अंतर्मन तक नहीं पहुँच पाती । यह भौतिक शरीर जिन पांच तत्वों से बना होता है ,उन सब की प्रकृति भी स्थूल ही होती है । आँख और मस्तिष्क व उसमे अवस्थित बुद्धि की प्रकृति भी स्थूल ही होती है ।अतः कहा जा सकता है कि स्थूल के द्वारा स्थूल को देखा जाना ही स्थूल दृष्टि है । जो कुछ भी स्थूल दृष्टि से देखा जाता है वह स्थूल रूप से,भौतिक रूप से और सांसारिकता के रूप से सत्य तो है ही । आज के युग में प्रायः प्रत्येक व्यक्ति स्थूल दृष्टि को ही अत्यधिक महत्त्व देता है । इसी कारण से भौतिकता का प्रभाव दिन प्रतिदिन निरंतर बढ़ता ही जा रहा है । चूंकि यह असत्य तो है नहीं ,इसलिए आलोचना भी नहीं की जा सकती । स्थूल दृष्टि और स्थूल तत्व तथा स्थूल तथ्य सब उस परम ब्रह्म परमात्मा की ही देन है ,इस तथ्य को स्वीकारना ही सत्यको स्वीकारना है । इस स्थूल सत्य के साथ एक आध्यात्मिक व्यक्ति कैसे सामंजस्य बैठाते हुए अपने जीवन को अच्छी प्रकार जी सकता है,यह कला सीख लेना ही सच्चा ज्ञान है ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
स्थूल दृष्टि से जो कुछ भी दिखाई देता है वह सत्य ही होता है । परन्तु यह सत्य कम प्रकाश की तरह का होता है । यह असत्य कदापि नहीं है ,है यह भी सत्य । परन्तु इसे आप सत्य की एक झलक मात्र कह सकते हैं । जैसे कम प्रकाश में हम स्पष्ट नहीं देख पाते उसी प्रकार सत्य को हम स्थूल दृष्टि से सही सही नहीं समझ पाते हैं ।मनुष्य और अन्य प्राणियों में मूलभूत अंतर इस दृष्टि का ही है । अन्य जीवों में प्रायः स्थूल दृष्टि ही होती है ,कुछ प्राणियों में सूक्ष्म दृष्टि भी होती है परन्तु मनुष्य के अतिरिक्त अन्य सब प्राणियों में कारण दृष्टि का पूर्णतया अभाव होता है । वे यह जानते हैं कि स्थूल रूप से वे एक विशेष प्रकार के जानवर है और मनुष्य उनसे अलग किस्म का प्राणी है ।
स्थूल दृष्टि केवल स्थूल शरीर को ही देख पाती है । स्थूल दृष्टि किसी के भी अंतर्मन तक नहीं पहुँच पाती । यह भौतिक शरीर जिन पांच तत्वों से बना होता है ,उन सब की प्रकृति भी स्थूल ही होती है । आँख और मस्तिष्क व उसमे अवस्थित बुद्धि की प्रकृति भी स्थूल ही होती है ।अतः कहा जा सकता है कि स्थूल के द्वारा स्थूल को देखा जाना ही स्थूल दृष्टि है । जो कुछ भी स्थूल दृष्टि से देखा जाता है वह स्थूल रूप से,भौतिक रूप से और सांसारिकता के रूप से सत्य तो है ही । आज के युग में प्रायः प्रत्येक व्यक्ति स्थूल दृष्टि को ही अत्यधिक महत्त्व देता है । इसी कारण से भौतिकता का प्रभाव दिन प्रतिदिन निरंतर बढ़ता ही जा रहा है । चूंकि यह असत्य तो है नहीं ,इसलिए आलोचना भी नहीं की जा सकती । स्थूल दृष्टि और स्थूल तत्व तथा स्थूल तथ्य सब उस परम ब्रह्म परमात्मा की ही देन है ,इस तथ्य को स्वीकारना ही सत्यको स्वीकारना है । इस स्थूल सत्य के साथ एक आध्यात्मिक व्यक्ति कैसे सामंजस्य बैठाते हुए अपने जीवन को अच्छी प्रकार जी सकता है,यह कला सीख लेना ही सच्चा ज्ञान है ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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