Monday, May 12, 2014

सत्य - असत्य |-१४

                         सत्य और असत्य का चक्कर कई बार इतना खतरनाक रूप ले लेता है की साधारण व्यक्ति का सिर भन्नाने लगता है । इसी लिए संतों ने सत्य और असत्य के फेर में न पड़ने को ही सत्य कहा है । यह कहना कि बिना सत्य को जाने समझे जीवन कितना बोझिल लगता है ,उचित है । परन्तु  सत्य कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो बाजार में जाकर खरीदी जा सके या किसी व्यक्ति से उधार  ली जा सके । जब तक आपकी अन्तरात्मा इसको समझने के लिए ,सत्य को पाने के लिए व्याकुल नहीं होगी, तब तक सत्य क्या है ,समझा नहीं जा सकेगा ।  जब प्यास बढती है ,एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाती है तभी मनुष्य जल के श्रोत की तलाश  करता है । आप सत्य को जानने के लिए कितने उत्सुक हैं ,इस बात का अनुमान आपकी सत्य के प्रति बढ़ती रुचि और सत्य को पाने की आपकी अतिशय प्यास से ही लगाया जा सकता है । संसार में आज तक मैंने किसी को भी सत्य के अतिरिक्त असत्य के बारे में बात करते नहीं  सुना । मैं आश्चर्यचकित हूँ,यह जानकर कि जब सभी सत्य के इतने समर्थन में है तो फिर चारों ओर असत्य ही असत्य क्यों नज़र आ रहा है ?यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि संसार में सब ओर जब सत्य ही सत्य है तो फिर मुझे असत्य क्यों नज़र आ रहा है ?
                   यह असत्य केवल मुझे ही नज़र नहीं आ रहा है बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ ऐसा ही हो रहा है । इस संसार में हर व्यक्ति  सत्य के प्रति इतना आसक्त हो गया है कि  इस संसार में सत्य पर वह अपना एकाधिकार समझने लगा है । और जब आसक्ति,एकाधिकार की हद तक बढ़ जाती है तब व्यक्ति को स्वयं के अतिरिक्त सब असत्य ही नज़र आने लगता है ,जबकि वास्तव में सब ओर सत्य ही होता है । सत्य का एक मात्र स्वामित्व स्वयं के पास होना मान लेना ही उस व्यक्ति को सत्य से उसे कोसों दूर कर देता है  । अतः कहा जा सकता है कि सत्य को जानना,समझना और आत्मसात कर लेना ही सबसे अच्छी बात है,सत्य के प्रति आसक्ति आपको सत्य उपलब्ध नहीं करा सकती । अगर आप सत्य को आत्मसात कर लेते हैं तो फिर संसार में कहीं भी असत्य नज़र नहीं आएगा । जब राजा जनक ने अपने गुरु अष्टावक्र से सत्य जान लिया और सत्य को आत्मसात कर लिया,तुरंत ही ,उसी समय वे विदेह हो गए । उन्हें संसार में चारों ओर सत्य ही सत्य नज़र आने लगा । इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि केवल राजा जनक को ही सत्य नज़र आने लगा । यह वास्तविकता है कि संसार में हर ओर सत्य ही है ,असत्य है ही नहीं ।
               मैंने प्रारम्भ में ही यह स्पष्ट कर दिया है कि संसार में चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश है,अँधेरा है ही नहीं । हम प्रकाश की न्यूनतम मात्रा को अँधेरा कह अवश्य देते है परन्तु अगर गंभीरता से देखा जाये तो अँधेरे का अस्तित्व है ही नहीं । आप जरा उल्लू से पूछ कर देखें,वह कहेगा कि अँधेरा तो दिन में होता है,प्रकाश तो रात को ही होता है । अब  आप स्वयं ही निर्णय कीजिये कि वास्तव में अस्तित्व प्रकाश का है या अँधेरे का,सत्य का है या असत्य का । और जिस दिन आप सही निर्णय पर पहुंच जायेंगे फिर आपको कही पर भी नहीं भटकना होगा सत्य को पाने के लिए । आप सत्य के बीच ही अपने को खड़ा पाएंगे।
क्रमशः
                                   ||  हरिः शरणम् ||     

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