सत्य और असत्य इस संसार में काल,स्थान और परिस्थिति सापेक्ष है । एक स्थान का सत्य उसी समय किसी अन्य स्थान पर असत्य हो जाता है । इसी प्रकार विपरीत परिस्थितियों में व्यक्त किया हुआ सत्य भी असत्य प्रतीत होता है । इस संसार का सत्य भी यही है कि यहाँ कुछ भी सत्य नहीं है । इसी कारण से संसार को मनीषियोंने असत्य अथवा असत कहा है । जो समय,स्थान और परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है,भला वह कभी सत कैसे हो सकता है?आपके लिए जो सत्य है,हो सकता है वह किसी अन्य के लिए असत्य भी हो सकता है ।
अभी मैं पिछले दिनों सेन फ्रांसिस्को से दुबई की उडान पर था । यह मार्ग उत्तरी ध्रुव पर से होकर है । जब उत्तरी ध्रुव पर से विमान गुजर रहा था तब मैं बड़ी ही असमंजस की स्थिति में यह सोचकर था कि यहाँ दक्षिणी दिशा किधर है? मैं तय नहीं कर पा रहा था ,क्योंकि अगर नीचे की तरफ इशारा करू तो वहां उत्तरी ध्रुव नज़र आ रहा था । मैंने पास बैठे सहयात्री से जब यही प्रश्न किया तो वह भी निरुत्तर था । अंत में मैंने व्योमबाला से कहा कि वह विमान पायलट से पूछकर बताये कि दक्षिण दिशा किधर है । उत्तर देने के लिए पायलट स्वयं मेरे पास आये और कहने लगे कि हम इस रास्ते से प्रतिदिन आते जाते है ,परन्तु ऐसा प्रश्न किसी भी यात्री ने कभी भी नहीं पूछा । उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर दिया -" उत्तरी ध्रुव पर आकर सभी दिशाएं समाप्त हो जाती है ,इसी कारण से उत्तरी ध्रुव के मुख्य बिंदु परआकर विमान संचालन संभव नहीं हो पाता । अतः विमान को उत्तरी ध्रुव से कुछ किमी इधर या उधर से ही गुजारा जाता है ,उत्तरी ध्रुव के एकदम ऊपर से नहीं । अब यहाँ से हमारा विमान चाहे किसी भी दिशा की तरफ जाये,हर ओर दक्षिणी दिशा की ओर ही जायेगा क्योंकि चारों ओर से उत्तरी ध्रुव पीछे छूटेगा और हम दक्षिणी ध्रुव की तरफ ही बढ़ेंगे ।" मैंने गंभीरता के साथ उनकी बात पर विचार किया और पाया कि विमान पायलट का कहना एकदम सही था । अब आप ही विचार कीजिये ,पृथ्वी के एक स्थान का सत्य दुसरे स्थान पर आकर कैसे असत्य हो जाता है ?वास्तव में वह असत्य नहीं होता है । दूसरे शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है कि प्रत्येक स्थान का अपना अपना सत्य होता है । अतः किसी एक स्थान के सत्य की तुलना किसी अन्य स्थान के सत्य से करना बेमानी होगा ।
इसी प्रकार भारत और अमेरिका में लगभग १२ घण्टे का समयांतर है । भारत में रहने वाला अगर कहे कि अभी दोपहर है तो एक साधारण व्यक्ति जो कि अमेरिका में है इस बात को असत्य कहेगा । उसके अनुसार तो उस समय मध्य रात्रि होगी । कहने का अर्थ यह है कि सत्य को स्थान के परिपेक्ष्य में नहीं देखना चाहिए । सत्य तो स्थान के अनुसार बदलता रहता है । सत्य को स्थानानुसार असत्य घोषित कर देना अनुचित है ।
इस संसार में परमात्मा ने सब कुछ सत्य ही प्रकट किया है । यहाँ असत्य कुछ भी नहीं है । अतः सत्य और असत्य के भ्रम में न पड़े । आप भी इनसे परे होकर जीवन का आनंद लें । जीवन आनंद लेने के लिए ही है । आप भी परमात्मा के अंश हैं और परमात्मा अपने आनंद केलिए ही इस सृष्टि की रचना करता है और आनंद के लिए ही उसे वापिस समेट भी लेता है । इन सबका ज्ञान प्राप्त कर समस्त ज्ञान को विस्मृत कर दें ,तभी आप जीवन का वास्तविक आनंद ले पाएंगे ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
अभी मैं पिछले दिनों सेन फ्रांसिस्को से दुबई की उडान पर था । यह मार्ग उत्तरी ध्रुव पर से होकर है । जब उत्तरी ध्रुव पर से विमान गुजर रहा था तब मैं बड़ी ही असमंजस की स्थिति में यह सोचकर था कि यहाँ दक्षिणी दिशा किधर है? मैं तय नहीं कर पा रहा था ,क्योंकि अगर नीचे की तरफ इशारा करू तो वहां उत्तरी ध्रुव नज़र आ रहा था । मैंने पास बैठे सहयात्री से जब यही प्रश्न किया तो वह भी निरुत्तर था । अंत में मैंने व्योमबाला से कहा कि वह विमान पायलट से पूछकर बताये कि दक्षिण दिशा किधर है । उत्तर देने के लिए पायलट स्वयं मेरे पास आये और कहने लगे कि हम इस रास्ते से प्रतिदिन आते जाते है ,परन्तु ऐसा प्रश्न किसी भी यात्री ने कभी भी नहीं पूछा । उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर दिया -" उत्तरी ध्रुव पर आकर सभी दिशाएं समाप्त हो जाती है ,इसी कारण से उत्तरी ध्रुव के मुख्य बिंदु परआकर विमान संचालन संभव नहीं हो पाता । अतः विमान को उत्तरी ध्रुव से कुछ किमी इधर या उधर से ही गुजारा जाता है ,उत्तरी ध्रुव के एकदम ऊपर से नहीं । अब यहाँ से हमारा विमान चाहे किसी भी दिशा की तरफ जाये,हर ओर दक्षिणी दिशा की ओर ही जायेगा क्योंकि चारों ओर से उत्तरी ध्रुव पीछे छूटेगा और हम दक्षिणी ध्रुव की तरफ ही बढ़ेंगे ।" मैंने गंभीरता के साथ उनकी बात पर विचार किया और पाया कि विमान पायलट का कहना एकदम सही था । अब आप ही विचार कीजिये ,पृथ्वी के एक स्थान का सत्य दुसरे स्थान पर आकर कैसे असत्य हो जाता है ?वास्तव में वह असत्य नहीं होता है । दूसरे शब्दों में कहें तो कहा जा सकता है कि प्रत्येक स्थान का अपना अपना सत्य होता है । अतः किसी एक स्थान के सत्य की तुलना किसी अन्य स्थान के सत्य से करना बेमानी होगा ।
इसी प्रकार भारत और अमेरिका में लगभग १२ घण्टे का समयांतर है । भारत में रहने वाला अगर कहे कि अभी दोपहर है तो एक साधारण व्यक्ति जो कि अमेरिका में है इस बात को असत्य कहेगा । उसके अनुसार तो उस समय मध्य रात्रि होगी । कहने का अर्थ यह है कि सत्य को स्थान के परिपेक्ष्य में नहीं देखना चाहिए । सत्य तो स्थान के अनुसार बदलता रहता है । सत्य को स्थानानुसार असत्य घोषित कर देना अनुचित है ।
इस संसार में परमात्मा ने सब कुछ सत्य ही प्रकट किया है । यहाँ असत्य कुछ भी नहीं है । अतः सत्य और असत्य के भ्रम में न पड़े । आप भी इनसे परे होकर जीवन का आनंद लें । जीवन आनंद लेने के लिए ही है । आप भी परमात्मा के अंश हैं और परमात्मा अपने आनंद केलिए ही इस सृष्टि की रचना करता है और आनंद के लिए ही उसे वापिस समेट भी लेता है । इन सबका ज्ञान प्राप्त कर समस्त ज्ञान को विस्मृत कर दें ,तभी आप जीवन का वास्तविक आनंद ले पाएंगे ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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