परम-ब्रह्म परमात्मा की सत प्रकृति का पहला गुण है-अस्ति। अस्ति का अर्थ एक ही है । अस्ति अर्थात केवल वही है । यहाँ जो आपको मैं,तूं,वह,गाय,घोडा,पत्थर,पेड़,फूल इत्यादि जितने भी दिखाई दे रहे हैं ,वे सब वही एक ही है। उनको भिन्न भिन्न रूपों में देखना ही असत है,उसके भिन्न भिन्न नाम होना ही असत्य है । गीता में भगवान श्रीकृष्ण इसको एक दम स्पष्ट रूप से कहते हैं । कहीं पर ही कोई संशय वे छोड़ते नहीं हैं ।
यो माँ पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च में न प्रणश्यति ॥ गीता ६/३० ॥
अर्थात,जो पुरुष समस्त भूतों में सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ वासुदेव के अंतर्गत देखता है,उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता ।
संसार में जितने भी जीव हैं सबमे वही एक मात्र परमात्मा निवास करता है । जब आपकी दृष्टि ऐसी हो जाएगी कि प्रत्येक वस्तु ,प्रत्येक जीव और प्रत्येक स्थान पर आपको परमात्मा ही परमात्मा नज़र आने लगे तब कही पर कुछ भी असत्य नहीं रहेगा । सब कुछ सत्य हो जायेगा । वास्तविकता में देखा जाये तो इस ब्रह्माण्ड में परमात्मा के अतिरिक्त है भी क्या?जब तक आप परमात्मा के अतिरिक्त जो भी देखोगे वह सब असत्य होगा । असत्य इसलिए,क्योंकि जो भी आपकी भौतिक दृष्टि देखती है,वह सब परिवर्तनशील है । और सत्य कभी भी परिवर्तित नहीं होता ।
परमात्मा की दूसरी सत प्रकृति है भाती -स्व-प्रकाशमान । परमात्मा एक अक्षय ऊर्जा भंडार है । उसको किसी अन्य श्रोत से ऊर्जा प्राप्त करनी नहीं होती । हमारे सौर मंडल का सूर्य एक ऊर्जा श्रोत अवश्य है परन्तु वैज्ञानिक कहते हैं कि यह सूर्य भी एक दिन ठंडा हो जायेगा अर्थात इसमे स्थित ऊर्जा एक दिन समाप्त हो जाएगी । सूर्य की ऊर्जा का निरंतर समापन हो रहा है अतः वह स्व-प्रकाशित नहीं है क्योंकि स्व का प्रकाशित होने का अर्थ एक ही होता है-सदैव के लिए प्रकाशित होना । इस मायने में सूर्य स्व-प्रकाशित नहीं है । वह प्रकाश और ऊर्जा किसी अन्य श्रोत से प्राप्त कर रहा है । वह श्रोत है-परम-ब्रह्म । जो स्व-प्रकाशित होने के साथ साथ दूसरों को भी प्रकाशित करता है ,दूसरों को भी अपनी ऊर्जा से ऊर्जावान बनाता है ।
इस दृष्टि से अर्थात सांसारिक दृष्टि से देखा जाये तो सूर्य भी परिवर्तनशील है । इस परिवर्तनशीलता के कारण सूर्य को भीअसत कहा जा सकता है । परन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से अगर देखा जाये तो सूर्य के प्रकाश के पीछे भी आपको परमात्मा खड़े नज़र आएंगे । परमात्मा के सूर्य में दर्शन करते ही वह भी सत्य हो जायेगा । यही आध्यात्मिक ज्ञान है जो सांसारिकता के असत से आपको सत की तरफ ले जा सकता है ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
यो माँ पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च में न प्रणश्यति ॥ गीता ६/३० ॥
अर्थात,जो पुरुष समस्त भूतों में सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ वासुदेव के अंतर्गत देखता है,उसके लिए मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिए अदृश्य नहीं होता ।
संसार में जितने भी जीव हैं सबमे वही एक मात्र परमात्मा निवास करता है । जब आपकी दृष्टि ऐसी हो जाएगी कि प्रत्येक वस्तु ,प्रत्येक जीव और प्रत्येक स्थान पर आपको परमात्मा ही परमात्मा नज़र आने लगे तब कही पर कुछ भी असत्य नहीं रहेगा । सब कुछ सत्य हो जायेगा । वास्तविकता में देखा जाये तो इस ब्रह्माण्ड में परमात्मा के अतिरिक्त है भी क्या?जब तक आप परमात्मा के अतिरिक्त जो भी देखोगे वह सब असत्य होगा । असत्य इसलिए,क्योंकि जो भी आपकी भौतिक दृष्टि देखती है,वह सब परिवर्तनशील है । और सत्य कभी भी परिवर्तित नहीं होता ।
परमात्मा की दूसरी सत प्रकृति है भाती -स्व-प्रकाशमान । परमात्मा एक अक्षय ऊर्जा भंडार है । उसको किसी अन्य श्रोत से ऊर्जा प्राप्त करनी नहीं होती । हमारे सौर मंडल का सूर्य एक ऊर्जा श्रोत अवश्य है परन्तु वैज्ञानिक कहते हैं कि यह सूर्य भी एक दिन ठंडा हो जायेगा अर्थात इसमे स्थित ऊर्जा एक दिन समाप्त हो जाएगी । सूर्य की ऊर्जा का निरंतर समापन हो रहा है अतः वह स्व-प्रकाशित नहीं है क्योंकि स्व का प्रकाशित होने का अर्थ एक ही होता है-सदैव के लिए प्रकाशित होना । इस मायने में सूर्य स्व-प्रकाशित नहीं है । वह प्रकाश और ऊर्जा किसी अन्य श्रोत से प्राप्त कर रहा है । वह श्रोत है-परम-ब्रह्म । जो स्व-प्रकाशित होने के साथ साथ दूसरों को भी प्रकाशित करता है ,दूसरों को भी अपनी ऊर्जा से ऊर्जावान बनाता है ।
इस दृष्टि से अर्थात सांसारिक दृष्टि से देखा जाये तो सूर्य भी परिवर्तनशील है । इस परिवर्तनशीलता के कारण सूर्य को भीअसत कहा जा सकता है । परन्तु आध्यात्मिक दृष्टि से अगर देखा जाये तो सूर्य के प्रकाश के पीछे भी आपको परमात्मा खड़े नज़र आएंगे । परमात्मा के सूर्य में दर्शन करते ही वह भी सत्य हो जायेगा । यही आध्यात्मिक ज्ञान है जो सांसारिकता के असत से आपको सत की तरफ ले जा सकता है ।
क्रमशः
॥ हरिः शरणम् ॥
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