Friday, May 16, 2014

सत्य - असत्य |-१८

                                       नाम और रूप,जो कि परम-ब्रह्म परमात्मा की असत प्रकृति है ,का अस्तित्व सदा के लिए नहीं है । स्थायित्व के अभाव के कारण ही यह असत है अन्यथा सत तो सदा के लिए स्थाई होता है । जो पहले भी था आज भी है और भविष्य में भी होगा उसी को सत कहा जा सकता है । सत्य में ही किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता । असत या असत्य या जड़ प्रकृति कहना एक ही बात है । यह भौतिक शरीर पांच तत्वों से मिलकर बना है । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन पाँचों का नाम भी होता है और रूप भी । इनके भी नाम और रूप परिवर्तित होते रहते हैं । इसीलिए इनकी प्रकृति अपरा,असत्य,जड़ या असत नाम से वर्गीकृत की गयी है ।
                         इन पांच तत्वों में पहला तत्व है-पृथ्वी । इस पृथ्वी पर स्थित पत्थरों के ढेर को हम पहाड़ कहते है,बालू मिट्टी से पटे स्थान को हम रेगिस्तान कह देते हैं । पहाड़ों के बीच पठार और दर्रे होते है । ये सब है पृथ्वी ही,परन्तु इनका रूप परिवर्तित होते ही इनके नाम भी बदल जाते है । हमारा सारा संसार इस पृथ्वी पर ही है । भौगोलिक दृष्टि से इनके नाम हम एशिया,यूरोप,अमेरिका इत्यादि रख देते हैं । राजनैतिक दृष्टि से सीमांकन करते हुए विभिन्न नामों के देश बना देते है । आज जो देश है ,कल वह विभाजित होकर अन्य एक ,दो या अधिक देशों के नाम परिवर्तित कर लेते है । पृथ्वी एक ही है परन्तु अलग अलग रूपों के कारण नाम अलग अलग हो जाते है । आज जहाँ रेगिस्तान है वहां कल जंगल हो सकते है ,आज जहाँ पहाड़ है कल वहां ज्वालमुखी भी बन सकता है ,पहाड़ ,पठार ,रेगिस्तान,जंगल सब परिवर्तित हो सकते है । परिवर्तन पृथ्वी के रूप और नाम में हो रहा है अतः यह शरीर का एक जड़ तत्व है जिसकी प्रकृति असत है क्योंकि इसमे परिवर्तन होते रहते हैं ।
                       दूसरा तत्व है-जल । जल के उबलने पर उसका नाम वाष्प हो जाता है,जो उसके रूप परिवर्तन के कारण होता है । जब यही जल अत्यधिक ठंडा कर दिया जाये तो वह ठोस रूप में बदल जाता है । रूप परिवर्तित होते ही नाम भी बदल जाता है । ठोस अवस्था के जल को हम बर्फ नाम से पुकारते हैं । जल में जब चीनी मिला दी जाती है तब वह शरबत नाम से जाना जाता है । इसी कारण से रूप के अनुसार नाम बदलते रहते हैं जबकि उसका मूल तत्व जल ही होता है । रूप और नाम परिवर्तन के कारण जल की प्रकृति जड़ यानि असत कही गयी है ।
                       इस भौतिक शरीर का तीसरा तत्व है-अग्नि । अग्नि जब अपना विकराल रूप धारण कर  जंगल के जंगल जला डालती है तब वह आग दावानल कहलाती है । इसी अग्नि के कारण  जब दीपक सबको प्रकाशित करता है तब उसी अग्नि का नाम ज्योति हो जाता है । जब वह एक छोटी सी जगह  छोटे से रूप में अवस्थित होती है तब उसे चिंगारी कह देते हैं । यही अग्नि जब कोयले को जलाती है तब उसका नाम अंगारा हो जाता है । जब चिंगारी या अंगारा भभक उठता है तब इसी अग्नि का नाम ज्वाला बन जाता है । अग्नि का रूप और नाम परिवर्तित होता रहता है इसी कारण से अग्नि की प्रकृति असत कही गयी है ।
                          चौथा तत्व है आकाश । पृथ्वी के इर्द गिर्द जो आकाश अवस्थित है उसे हम वायुमंडल कहते हैं । वायुमंडल से बाहर निकलते ही यही आकाश अंतरिक्ष हो जाता है । वायुमंडल के कारण ही पृथ्वी पर जीवन संभव हुआ है । इस आकाश में निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं ,अतः इसकी प्रकृति को भी असत कहा गया है ।
                पांचवां और अंतिम तत्व है-वायु । वायु के ४९ भिन्न भिन्न नाम और प्रकार है । इतने नाम परिवर्तन अन्य किसी तत्व के नहीं होते हैं । नाम और रूप परिवर्तनशीलता के कारण वायु तत्व को भी असत तत्व कहा गया है । जब वायु मंद गति से बहती है,बयार कहलाती है । जब इसकी गति तेज हो जाती है और पृथ्वी तत्व को अपने साथ कर लेती है तब इसका नाम आंधी या अंधड़ हो जाता है । और अधिक तेज गति हो तो फिर इसका नाम और रूप परिवर्तित हो तूफ़ान हो जाता है । इसी प्रकार मनुष्य के शरीर में भी वायु के भिन्न भिन्न रूप और नाम होते है । इनके कारण ही शरीर में वायु विकार पैदा होते हैं ।
क्रमशः
                               || हरिः शरणम् || 

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