Sunday, May 25, 2014

सत्य - असत्य |-२७

                                  जब व्यक्ति की मनोदशा परिवर्तित हो जाती है ,तब उसका  ऊँचाइयों की ओर उठना प्रारम्भ  हो जाता है |सांसारिकता के कम सत्य से आध्यात्मिकता के पूर्ण सत्य की ओर |स्थूल यहाँ आकर महत्वहीन हो जाता है और सूक्ष्म तो इतना सूक्ष्म है कि उसका होना या ना होना कोई महत्त्व नहीं रखता |सूक्ष्म दृष्टि व्यक्ति को "मैं"से ऊपर उठाते हुए "सब"की तरफ ले जाती है |फिर भी मात्र इतनी सूक्ष्म दृष्टि भी आपको पूर्ण सत्य का ज्ञान नहीं करवा सकती |जहाँ पहले "मैं"था वहां अब "हम" या "सब"है|परन्तु यह भी पूर्ण सत्य नहीं है |यह वैसा ही सत्य है जैसे कुर्सी का दिखना तो बंद हो गया परन्तु प्लास्टिक या लकड़ी अभी भी दिखाई पड़ रही है |लकड़ी या प्लास्टिक का दिखाई देते रहना भी पूर्ण सत्य नहीं है | हनुमान की सूक्ष्म दृष्टि अभी भी प्रभु और सेवक को देख रही है |हाँ,यह एक मनुष्य और बन्दर को देखने से ज्यादा सत्य है ,परन्तु पूर्ण सत्य से अभी भी कोसों दूर है | जब तक प्रभु और सेवक या प्लास्टिक और लकड़ी दिखाई देना भी समाप्त नहीं हो जाता ,तब तक सत्य कैसे  पूर्ण हो सकता है ?
                       पूर्ण सत्य को जानने के लिए आवश्यक है कि हम अपनी दृष्टि को सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म करें |हम लकड़ी या प्लास्टिक,प्रभु या सेवक होने का कारण जानने का प्रयास करें |ठीक है,हनुमान एक सेवक के रूप में है और भगवान् श्रीराम प्रभु के रूप में |परन्तु वास्तविकता में इनके ऐसा हो जाने के पीछे क्या कारण है ?जो भी कारण है ,वही पूर्ण सत्य है |इस प्रकार देखने की कला को ही कारण दृष्टि कहते हैं |इसके लिए हमें ज्ञान और विवेक की आवश्यकता होती है |ज्ञान और विवेक ही हमें कारण दृष्टि उपलब्ध करवा सकता है |भौतिक दृष्टि के लिए भौतिक आँखों की आवश्यकता होती है जब कि कारण दृष्टि के लिए आंतरिक चक्षु की |जब तक व्यक्ति प्रत्येक को भौतिक रूप से देखना बंद नहीं करेगा तब तक उसकी दृष्टि स्थूल ही बनी रहेगी |भौतिकता से ऊपर उठते ही सूक्ष्म दृष्टि का आगमन हो जाता है और आगे बढ़ते हुए व्यक्ति कारण दृष्टि को उपलब्ध हो जाता है |
                            यह कारण दृष्टि व्यक्ति को उस कारण से अवगत कराती है ,जिसकी वजह से यह सारा ब्रह्माण्ड संचालित हो रहा है |जब इस पूर्ण सत्य को व्यक्ति आत्मसात कर लेता है तब उसका अहंकार अर्थात  "मैं" भी पूर्णतया समाप्त हो जाता है |यह "मैं"ही व्यक्ति को स्थूल दृष्टि से सूक्ष्म दृष्टि की ओर बढ़ने से रोक देता है |अतः कारण दृष्टि को उपलब्ध होने के लिए अहंकार की समाप्ति आवश्यक है |तथा इस अहंकार की समाप्ति के लिए ज्ञान होना आवश्यक है |
क्रमशः
                                               || हरिः शरणम् ||

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