हमने यह स्पष्ट किया कि प्रत्येक स्थान का सत्य अपनी स्थिति के अनुसार होता है |लेकिन साधारण व्यक्ति उसको असत्य समझने की भूल कर बैठता है |हर स्थान का सत्य अलग अलग होता है | किसी एक स्थान का सत्य दूसरे स्थान के लिए असत्य प्रतीत जरूर होता है,परन्तु वास्तव में असत्य नहीं होता | मैंने शुरुआत में ही स्पष्ट कर दिया था कि इस ब्रह्माण्ड में जो भी हमें दृष्टिगोचर होता है अथवा जो भी आज अदृश्य है,चाहे वह जड़ हो ,चेतन हो,मनुष्य हो,कीट पतंग हो,जानवर हो आदि कुछ भी हो सब सत्य ही है |मात्र स्थान,समय और परिस्थितियां उसे असत्य बना देती है |आज हम जानेंगे कि समय कैसे सत्य को असत्य में परिवर्तित कर देता है |
गेलिलियो से पहले यह माना जाता था कि पृथ्वी स्थिर रहती है और सूर्य उसके चारों ओर परिक्रमा करता है | गेलिलियो ने सबसे पहले यह प्रतिपादित किया कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी उसके चारों और परिक्रमा कर रही है |सहस्राब्दियों से माने जाने वाले सत्य को गेलिलियो ने असत्य में बदल दिया |आज आधुनिक युग में गेलिलियो की बात भी असत्य साबित हो चुकी है | अब यह माना जाने लगा है की हमारे सौर मंडल का केंद्र सूर्य भी अपने समस्त ग्रहों को साथ लेकर किसी अन्य पिण्ड की परिक्रमा कर रहा है | हो सकता है ,यह तथ्य भी भविष्य में एक बार फिर झुठला दिया जाये |लेकिन पहले वाली बात भी उस समय में सत्य थी,गेलिलियो ने भी अपने समय में सत्य कहा था और आज का विज्ञान भी सत्य कह रहा है |अंतर केवल काल का यानि समय का ही है |आप आज कह सकते हैं कि गेलिलियो से पहले लोग असत्य कह रहे थे |यह भी कह सकते हैं कि गेलिलियो ने भी असत्य कहा था |आप एक बार गेलिलियो के काल में जाएँ या उससे पूर्ववर्ती काल में ,आपको सब वाही सत्य लगेगा जैसा उस समय में सत्य कहा जाता था |
गीता के प्रथम श्लोक को पढ़कर पिछली शताब्दी तक लोग इस बात को असत्य बताते रहे कि भला संजय कुरुक्षेत्र से मीलों दूर बैठकर अंधे धृतराष्ट्र को एक बंद कमरे में आँखों देखा हाल बता रहा है |भला हो दूरदर्शन के अविष्कार कर्ता का ,जिसने अपने काल में इस बात को सत्य प्रमाणित कर दिया | ऐसे हजारों उदाहरण अपने शास्त्रों में भरे पड़े है,जो आज से पहले असत्य प्रतीत होते थे ,आज वे सभी एक एक कर सत्य प्रमाणित होते जा रहे हैं |वस्तव में देखा जाये तो ये सब पहले भी सत्य थे और आज भी है |अंतर केवल प्रमाणिकता का है | और आपको एक बात बता दूं,सत्य को कभी भी किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है |
आप को अपने चारों ओर समय और स्थान के अनुसार परिवर्तित होते जा रहे सत्य के सैंकड़ो उदाहरण मिल जायेंगे |आपकी बौधिक क्षमता इतनी अधिक होनी चाहिए कि आप सत्य को समय,स्थान अथवा परिस्थितियों के अनुसार देखना बंद कर दें |आप समस्त ज्ञान अर्जित करने के बाद भी सत्य को प्रमाणित नहीं कर पाएंगे |आप अपने ज्ञान से भी आगे निकल जायेंगे ,अपने इस तथाकथित ज्ञान का परित्याग करके ,तभी आप जान पाएंगे कि यहाँ सत्य के अतिरिक्त कुछ अन्य है भी नहीं |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
गेलिलियो से पहले यह माना जाता था कि पृथ्वी स्थिर रहती है और सूर्य उसके चारों ओर परिक्रमा करता है | गेलिलियो ने सबसे पहले यह प्रतिपादित किया कि सूर्य स्थिर है और पृथ्वी उसके चारों और परिक्रमा कर रही है |सहस्राब्दियों से माने जाने वाले सत्य को गेलिलियो ने असत्य में बदल दिया |आज आधुनिक युग में गेलिलियो की बात भी असत्य साबित हो चुकी है | अब यह माना जाने लगा है की हमारे सौर मंडल का केंद्र सूर्य भी अपने समस्त ग्रहों को साथ लेकर किसी अन्य पिण्ड की परिक्रमा कर रहा है | हो सकता है ,यह तथ्य भी भविष्य में एक बार फिर झुठला दिया जाये |लेकिन पहले वाली बात भी उस समय में सत्य थी,गेलिलियो ने भी अपने समय में सत्य कहा था और आज का विज्ञान भी सत्य कह रहा है |अंतर केवल काल का यानि समय का ही है |आप आज कह सकते हैं कि गेलिलियो से पहले लोग असत्य कह रहे थे |यह भी कह सकते हैं कि गेलिलियो ने भी असत्य कहा था |आप एक बार गेलिलियो के काल में जाएँ या उससे पूर्ववर्ती काल में ,आपको सब वाही सत्य लगेगा जैसा उस समय में सत्य कहा जाता था |
गीता के प्रथम श्लोक को पढ़कर पिछली शताब्दी तक लोग इस बात को असत्य बताते रहे कि भला संजय कुरुक्षेत्र से मीलों दूर बैठकर अंधे धृतराष्ट्र को एक बंद कमरे में आँखों देखा हाल बता रहा है |भला हो दूरदर्शन के अविष्कार कर्ता का ,जिसने अपने काल में इस बात को सत्य प्रमाणित कर दिया | ऐसे हजारों उदाहरण अपने शास्त्रों में भरे पड़े है,जो आज से पहले असत्य प्रतीत होते थे ,आज वे सभी एक एक कर सत्य प्रमाणित होते जा रहे हैं |वस्तव में देखा जाये तो ये सब पहले भी सत्य थे और आज भी है |अंतर केवल प्रमाणिकता का है | और आपको एक बात बता दूं,सत्य को कभी भी किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती है |
आप को अपने चारों ओर समय और स्थान के अनुसार परिवर्तित होते जा रहे सत्य के सैंकड़ो उदाहरण मिल जायेंगे |आपकी बौधिक क्षमता इतनी अधिक होनी चाहिए कि आप सत्य को समय,स्थान अथवा परिस्थितियों के अनुसार देखना बंद कर दें |आप समस्त ज्ञान अर्जित करने के बाद भी सत्य को प्रमाणित नहीं कर पाएंगे |आप अपने ज्ञान से भी आगे निकल जायेंगे ,अपने इस तथाकथित ज्ञान का परित्याग करके ,तभी आप जान पाएंगे कि यहाँ सत्य के अतिरिक्त कुछ अन्य है भी नहीं |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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