Saturday, May 17, 2014

सत्य - असत्य |-१९

                                     इस प्रकार हमने शरीर के पाँचों भौतिक तत्वों के रूप और नाम की सक्षिप्त चर्चा की ।इससे पहले पांचो ज्ञानेन्द्रियों के कार्यों और उन पर पड़ने वाले मन के प्रभाव  पर भी चर्चा की थी । शरीर के इन तत्वों को अपनी परिवर्तनशीलता के कारण ही इन्हें असत ,असत्य कहा गया है । असत,इनके विभिन्न रूपों और नामों के कारण कहा गया है,वास्तविकता मे ये पांचों तत्व ही असत्य नहीँ  है । इनकी प्रकृति के कारण से इनको असत्य कहा गया है । पाँचों तत्व उस परमात्मा के कारण  और एक दृष्टि से देखा जाये तो परमात्मा ही है ।  क्योंकि किसी भी एक तत्व की अनुपस्थिति से जीवन सम्भव नहीं होता । परमात्मा कभी भी असत्य नहीं हो सकते इसलिए ये पांचों तत्व भी असत्य नहीं है ।
                                  इसी प्रकार ज्ञानेन्द्रियाँ,कर्मेन्द्रियाँ तथा इनके विषय और मन,बुद्धि व अहंकार आदि शेष बचे १८ तत्वों की प्रकृति भी असत है । असत,इसलिए क्योंकि इनमे निरंतर परिवर्तन होता रहता है । स्थाई भाव का अभाव इन्हे सत्य नहीं होने देता ,जबकि ये सभी सत्य हैं । जब परमात्मा के कारण ही समस्त २३ असत तत्व है,तो इनके असत्य होने का तो प्रश्न ही नहीं है ।
                              आप सभी पाँचों भौतिक तत्वों को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि किसी एक की अनुपस्थिति अथवा थोड़ी सी कमी भी जीवन के अस्तित्व को ही संकट में डाल सकती है । ऐसे में इनका असत्य होना या इन्हे असत्य कहना उचित नहीं है । इनके विभिन्न नाम और रूप असत हो सकते हैं और हैं भी परन्तु मूल रूप से ये तत्व सत ही हैं । सांसारिकता में आसक्त या लिप्त हो जाने के कारण ही असत्य हो जाते हैं ।
                                  इस प्रकार हमने देखा कि परम-ब्रह्म परमात्मा की असत प्रकृति में नाम और रूप परिवर्तनशीलता के कारण असत है । मूल रूप से परमात्मा की प्रकृति असत और सत से परे ही है । असत के बाद हम उस परम पिता परमात्मा की सत प्रकृति का अवलोकन करते हैं । परमात्मा की सत प्रकृति के तीन गुण या तीन भाग है -अस्ति,भाती और प्रियम् । ये तीनो गुण कभी भी परिवर्तित नहीं होते ,अतः इन्हे परमात्मा की सत प्रकृति कहा जाता है । अस्ति का अर्थ होता है "होना" या "है" । भाती  का अर्थ होता है "स्व-प्रकाशित " या "प्रकाशमान "अर्थात किसी अन्य के प्रभाव से प्रकाशित न होना बल्कि स्वयं का प्रकाशमान होना । तीसरी और अंतिम सत प्रकृति है प्रियम् । प्रियम् का अर्थ है सबको प्रेम करनेवाला और सबसे प्रेम पानेवाला ।
                             परमात्मा की ऊपर वर्णित तीनों सत प्रकृतियाँ कभी भी बदलती नहीं है ,सत्य है । इनकी विवेचना करने पर हम इनके अपरिवर्तनीय गुण  को सत्य पाएंगे ।
क्रमशः
                                            || हरिः शरणम् ||  

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