स्थूल दृष्टि से देखना भी सत्य को देखना है । यह सत्य उसी प्रकार है जिस प्रकार प्रत्येक पत्थर में ईश्वर होना एक सत्य है । अवांछित पत्थर को काटकर ही हम उसमे ईश्वर की मूरत देख पाते हैं उसी प्रकार स्थूल दृष्टि में आनेवाले कई अवांछित दृश्यों को अलग कर हम सूक्ष्म दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं । स्थूल दृष्टि से देखने पर आपको हनुमान एक बन्दर ही नजर आएंगे और श्रीराम एक मानव। परन्तु क्या इन दोनों के बारे में स्थूल दृष्टि से जो हम देख रहे हैं,मात्र वही एक सत्य है । मैं आपको पुनः एक बार याद दिला दूँ कि वास्तविकता में सत्य की कोई सीमा नहीं होती है । सत्य को किसी एक घेरे में बंद नहीं किया जा सकता । इसी कारण से चारों ओर हमें जो कुछ भी नज़र आ रहा है ,सब कुछ सत्य ही है । जैसे गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं -"नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः ॥ २/१६॥ "अर्थात असत्य की कहीं कोई सत्ता नहीं है और सत्य का कहीं भी अभाव नहीं है ।
परन्तु हनुमान का एक वानर होना और भगवान श्रीराम का एक मानव होना भी ,मात्र इतना होना भी पूर्ण सत्य नहीं है । पूर्ण सत्य को पाने के लिए दृष्टि को और सूक्ष्म करने की आवश्यकता है । सूक्ष्म दृष्टि से देखेंगे तो आप पाएंगे कि हनुमान एक बन्दर होने के साथ साथ एक सेवक भी हैं और श्रीराम मनुष्य होने के साथ साथ प्रभु की भूमिका में भी है । सत्य दोनों होना ही है । परन्तु प्रभु और सेवक होना ज्यादा सत्य है ,मनुष्य और बन्दर होने की तुलना में।यह सब संभव तब होता है जब आपकी दृष्टि भौतिकता से ऊपर उठकर कुछ अन्य को भी देखने की कोशिश करे ।
इस बात को मैं एक अन्य उदाहरण से स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ । आपके घर में कुर्सियां जरूर होगी । स्थूल दृष्टि से देखने पर आपको सभी कुर्सियां ,कुर्सियां ही नज़र आएगी । जब इनमें से कोई एक कुर्सी टूट जाती है तब क्या फिर भी वह कुर्सी ही कहलाती है? नहीं,बिलकुल नहीं । वह अब मात्र प्लास्टिक या लकड़ी हो जाती है । क्या टूटने से पहले वह लकड़ी या प्लास्टिक नहीं थी?जी हाँ,वह पहले भी लकड़ी या प्लास्टिक ही थी और अब भी वही है । स्थूल दृष्टि से वह कुर्सी पहले कुर्सी थी और अब प्लास्टिक या लकड़ी । परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो वह पहले भी लकड़ी या प्लास्टिक थी और अब भी वही है । स्थूल दृष्टि की मानोगे तो कुर्सी के टूटने का दुःख होगा और सूक्ष्म दृष्टि की मानोगे तो लकड़ी या प्लास्टिक के स्थूल के आकार परिवतन का क्या दुःख मनाना ? ऐसा दृष्टि परिवर्तन ,आपकी सम्पूर्ण मनो दशा को ही परिवर्तित कर देता है ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
परन्तु हनुमान का एक वानर होना और भगवान श्रीराम का एक मानव होना भी ,मात्र इतना होना भी पूर्ण सत्य नहीं है । पूर्ण सत्य को पाने के लिए दृष्टि को और सूक्ष्म करने की आवश्यकता है । सूक्ष्म दृष्टि से देखेंगे तो आप पाएंगे कि हनुमान एक बन्दर होने के साथ साथ एक सेवक भी हैं और श्रीराम मनुष्य होने के साथ साथ प्रभु की भूमिका में भी है । सत्य दोनों होना ही है । परन्तु प्रभु और सेवक होना ज्यादा सत्य है ,मनुष्य और बन्दर होने की तुलना में।यह सब संभव तब होता है जब आपकी दृष्टि भौतिकता से ऊपर उठकर कुछ अन्य को भी देखने की कोशिश करे ।
इस बात को मैं एक अन्य उदाहरण से स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ । आपके घर में कुर्सियां जरूर होगी । स्थूल दृष्टि से देखने पर आपको सभी कुर्सियां ,कुर्सियां ही नज़र आएगी । जब इनमें से कोई एक कुर्सी टूट जाती है तब क्या फिर भी वह कुर्सी ही कहलाती है? नहीं,बिलकुल नहीं । वह अब मात्र प्लास्टिक या लकड़ी हो जाती है । क्या टूटने से पहले वह लकड़ी या प्लास्टिक नहीं थी?जी हाँ,वह पहले भी लकड़ी या प्लास्टिक ही थी और अब भी वही है । स्थूल दृष्टि से वह कुर्सी पहले कुर्सी थी और अब प्लास्टिक या लकड़ी । परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से देखें तो वह पहले भी लकड़ी या प्लास्टिक थी और अब भी वही है । स्थूल दृष्टि की मानोगे तो कुर्सी के टूटने का दुःख होगा और सूक्ष्म दृष्टि की मानोगे तो लकड़ी या प्लास्टिक के स्थूल के आकार परिवतन का क्या दुःख मनाना ? ऐसा दृष्टि परिवर्तन ,आपकी सम्पूर्ण मनो दशा को ही परिवर्तित कर देता है ।
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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